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lakh take ki baat

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हमे आज के हालत पर बेहद दुःख होता है. विश्व में हम महाशक्ति बनकर उभर रहे है लेकिन यैसे समय में हमारे देश के भीतर जो कुछ चल रहा है वह बेहद चिंता जनक है. असल में बदलते देश को हम सभी इतनी तेजी से बदलना चाहते है की यह संभव नहीं हो पा रहा है. यदि यह जल्दबाजी यूँही जरी रही तो हम अवसाद में चले जायेंगे. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के पीछे जनता केवल येही सोच के जा रही है की वे इस सिस्टम को सुधरेंगे लेकिन हमारी जल्दबाजी के ही कारन हमे दोनों मर्तबा मुह की खानी पड़ी है. देश में बदलाव जरुरी है और यह बदलाव होगा भी. लेकिन इसके लिए हमे इंतजार भी करना पड़ेगा. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने जो कर दिखाया वो एक दिन में नहीं हुआ है. हमारी मसीहाओ को तलाशने की आदत ही हमारे विनाश का कारन बन रही है. याद रखे की गाँधी ने हमारी नैय्या को किनारे लगाया इसका यह मतलब नहीं होता के बिना गाँधी के हम कुछ नहीं कर सकते. किसी को भी गाँधी समजकर उसके पीछे चले जाने की हमारी आदत अब हमे बदलनी पड़ेगी. वरना हमारी यह आदत ही नयी समस्या का कारन बन जाएगी. जब तक हम खुद पे एकिन करना नहीं सीखेंगे तब तक देश का भला नहीं हो सकता. क्योंकि हम से बड़