कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...
हमारे बचपन के दिनों की बात है. उस समय सिर्फ दूरदर्शन ही हमारे मनोरंजन का साधन हुआ करता था. उस समय प्रस्तुत किए जाने वाले ज्यादातर कार्यक्रमों के माध्यम से जनजागरण कराने की कोशिश होती थी. गौरतलब बात यह भी थी कि उस समय आने वाले विज्ञापन तक हमें कोई न कोई मैसेज दे जाते थे. एक ऐसा ही विज्ञापन मेरे जेहन में घर कर गया. अलग -अलग दृश्यों में इंसान की इंसानियत को भूल जाने की आदत को दिखाकर एक मैसेज टीवी की स्क्रीन पर दिखाया जाता था कि ‘शैतान बनना आसान है, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल है?’. वाकई में दूरदर्शन के इस मैसेज ने मेरी और शायद मेरे जैसे हजारों -लाखों दर्शकों के दिलों -दिमाग पर गहरा असर किया. मेरे स्कूल के दिनों में मैंने अपने शिक्षकों से यही सीखा कि गोली किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती. हमारे शिक्षक तो अक्सर विश्व का नक्शा फाडने और उसे जोड़ने की कहानी सुनाया करते थे. हमें अंत में ये मैसेज देते कि विश्व के फटे हुए नक्शे को एक शिष्य ने तुरंत जोड़ दिया. जब उसे पूछा गया तो उसने बताया कि उसने तो नक्शे के पीछे जो इंसान का चित्र था उसे जोड़ा था. हमें ये मैसेज दिया जाता रहा कि इंस...