कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...

हमारे बचपन के दिनों की बात है. उस समय सिर्फ दूरदर्शन ही हमारे मनोरंजन का साधन हुआ करता था. उस समय प्रस्तुत किए जाने वाले ज्यादातर कार्यक्रमों के माध्यम से जनजागरण कराने की कोशिश होती थी. गौरतलब बात यह भी थी कि उस समय आने वाले विज्ञापन तक हमें कोई न कोई मैसेज दे जाते थे. एक ऐसा ही विज्ञापन मेरे जेहन में घर कर गया. अलग -अलग दृश्यों में इंसान की इंसानियत को भूल जाने की आदत को दिखाकर एक मैसेज टीवी की स्क्रीन पर दिखाया जाता था कि ‘शैतान बनना आसान है, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल है?’. वाकई में दूरदर्शन के इस मैसेज ने मेरी और शायद मेरे जैसे हजारों -लाखों दर्शकों के दिलों -दिमाग पर गहरा असर किया.
मेरे स्कूल के दिनों में मैंने अपने शिक्षकों से यही सीखा कि गोली किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती. हमारे शिक्षक तो अक्सर विश्व का नक्शा फाडने और उसे जोड़ने की कहानी सुनाया करते थे. हमें अंत में ये मैसेज देते कि विश्व के फटे हुए नक्शे को एक शिष्य ने तुरंत जोड़ दिया. जब उसे पूछा गया तो उसने बताया कि उसने तो नक्शे के पीछे जो इंसान का चित्र था उसे जोड़ा था. हमें ये मैसेज दिया जाता रहा कि इंसान को जोड़ोगे तो ही विश्व भी अपने आप जुड़ जाएगा. यही बात देश के लिए भी लागू होती है, ऐसा हमसे शिक्षकों द्वारा कहा जाता था.
जब युवावस्था में आए तो हमने नेशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) का हिस्सा बनकर कई गांवों में जाकर काम किए. हमने इस माध्यम से ये सीखा कि आप जिंदगी में कुछ भी हासिल कर लो, कामयाबी की बुलंदी पर आसीन हो जाओ लेकिन जबतक आप समाज के लिए कुछ नहीं करते हो तो फिर आप जिंदगी में कभी समाधानी नहीं हो सकते.
हमारी पूरी जिंदगी की शिक्षा यही रही कि हमने अच्छे इंसान बनकर रहना है. गुस्सा न तो करना है और न ही किसी को गुस्सा होने के लिए उकसाना है. प्रेम और आपसी भाईचारे से ही जिंदगी गुजारने का संदेश पूरी जिंदगी हमने हासिल किया. लेकिन आज देश के हालात ऐसे दिखाई नहीं देते है. जामिया में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान जो हुआ वह क्या था? हमारे युवाओं के दिमाग में इतना गुस्सा कहां से आ गया है? ये गुस्सा समाज और देश के हित में है? इंसान बने रहने की जो सीख हमें हमारे बचपन से मिलती रही है, क्या आज वैसे सीख हमारी नई पीढ़ी के बच्चों को दे रहे है? अगर नहीं तो शिक्षा में आए इस बदलाव से हम शांतिप्रिय, इंसानियत को अहमियत देने वाली पीढ़ी का निर्माण खाक कर पाएंगे.
हमें लौटना होगा...
बहुत हो गया, पिछले कुछ समय से हम नफरत के बीज बोने में ही लगे है. नेम, सरनेम, जाति- धर्म, सभ्यता, देश, समाज और लिंग के आधार पर हमने खुद को बांट दिया है. हम यह जानते ही नहीं है कि इस बांटने की आदत ने हमें भीतर से कितने हिस्सों में बांट रखा है. हम यह भी नहीं जान पा रहे है कि जिस नफरत के जहर को हम फैलाते जा रहे है, वह अब हमारी ही जिंदगी को बर्बाद करने पर तुला है. हम जिस समाज का हिस्सा है, उस समाज की रगों में यदि नफरत का जहर तेजी से फैलता रहा तो याद रखीए ऐसे जहरिले समाज में सभी का जीना मुश्किल हो जाएगा. प्यार की वैक्सिन भी हमारे पास है, दोस्तों. सभी नहीं संभले तो मुश्किल हो जाएगा. अभी भी वक्त है लौटने की तैयारी कर लो, अपने पुराने दिनों में. वरना ये देश और इंसानियत हमें कभी माफ नहीं करेगी. 

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