नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के काम आया ‘जनजागरण’ का हथियार
by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर. 1980 से महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में नक्सलियों ने कदम रखे और अगले दो दशक में नक्सलियों की हिंसा और उत्पात का सीधा टार्गेट ही पुलिस दल बनता रहा. एक के बाद एक, इतनी बड़ी वारदातों को नक्सलियों ने अंजाम दिया कि एक ही दशक में गढ़चिरोली पुलिस दल ने अपने सैकड़ों जांबाजों को खो दिया. लेकिन बावजूद इसके गढ़चिरोली पुलिस ने जो ‘जनजागरण अभियानों’ का सिलसिला जारी रखा, वहीं नक्सलियों के खात्मे के लिए सबसे प्रभावी हथियार साबित हुआ. गढ़चिरोली में ‘जनजागरण अभियानों’ का ये दौर वह था जब नक्सलियों के खिलाफ शस्त्रों के साथ ही गढ़चिरोली पुलिस सोशल मुद्दों को लेकर भी लड़ती हुई दिखाई दी. इन ‘जनजागरण अभियानों’ के माध्यम से सुदूर इलाकों के आदिवासी और ग्रामीणों को पहली बार प्रशासन और सरकार का दीदार हुआ. सरकारी योजनाएं पता चली और उन्हें यह विश्वास हुआ कि ‘सिस्टम’ उतना खराब नहीं है, जैसा उन्हें नक्सलियों द्वारा बताया जाता रहा है. उन्होंने इसी दौरान पहली बार जिलाधिकारी, जिला परिषद के सीईओ जैसे बड़े अधिकारियों को देखा, उनके मिले और अपनी बात भी रख सके. यह ऐसा मौका थ...