Posts

Showing posts from May, 2025

कांचन येले – जैसा यार, वैसी ही अनोखी कहानी

Image
- फहीम खान कांचन येले… नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वजह साफ़ है — ये शख्सियत ही कुछ अलग है। पिताजी फौज से रिटायर्ड, लेकिन कांचन हमेशा से मनमौजी मिज़ाज के रहे। हंसमुख इतना कि कॉलेज में हर किसी के दिल में जगह बना ली थी। आईटीआई से इलेक्ट्रिशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब साहब नागभिड़ के कॉलेज में मराठी साहित्य पढ़ने पहुंचे, तो जेब में हमेशा एक छोटा एफएम रेडियो साथ होता। गाने सुनना और गाना — दोनों ही शौक के साथ निभाते थे, और खुदा ने गला भी कमाल का दिया था। लेकिन असली पहचान तो उस आदत से बनी, जिससे सब परेशान भी रहते और हैरान भी — हर इलेक्ट्रॉनिक चीज़ को खोलकर उसका 'पोस्टमार्टम' करना। यही आदत बाद में हुनर बनी और साहब गुवाहाटी, गुजरात, मुंबई होते हुए नागपुर के ले मेरेडियन होटल तक पहुंच गए। बीच में हल्दीराम और सयाजी जैसे नामी होटलों का भी हिस्सा बने। आज मेहनत और हुनर के दम पर जिंदगी को सजाने-संवारने में लगे हैं। कांचन की सबसे बड़ी खासियत यही है कि खुद चाहे कितने ही दर्द क्यों न झेल रहे हों, दूसरों को हमेशा हंसाते रहे। कॉलेज के दिनों में जब क्लास बंक करते, तो सबको पता...

एक तोता, एक बच्चा और नक्सलवाद की परछाई – भामरागढ़ की वो तस्वीरें जो आज भी धड़कनों में कैद हैं

Image
✍️ फहीम खान वर्ष 2001 से 2012 तक गढ़चिरोली में बिताया गया मेरा पत्रकारिता जीवन सिर्फ खबरों की तलाश नहीं, बल्कि इंसानियत के नजदीक पहुंचने का सफर था। चंद्रपुर में ‘महाविदर्भ’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे अखबारों से होते हुए जब मुझे ‘नवभारत’ के जरिए गढ़चिरोली जाने का मौका मिला, तो मैंने उसे हाथ से जाने नहीं दिया। हालांकि नवभारत में मेरा प्रवास अल्पकालीन रहा, पर 'लोकमत समाचार' के जरिए इस ज़िले से जुड़ाव गहराता गया। गढ़चिरोली में जब मैं भामरागढ़ पहुंचा, तब नक्सलवाद अपने चरम पर था। पुलिस थाना और एसडीपीओ का बंगला शाम होते ही सूना हो जाता था। इन्हीं हालातों में एक दिन मैं उपविभागीय अधिकारी विजयकांत सागर के घर पहुंचा। वहीं पहली बार उनकी गोद में पल रहे मासूम रणवीर को देखा—पिंजरे के सामने बैठा हुआ, पिंजरे में बंद एक तोते को निहारता हुआ। उस क्षण ने मुझे झकझोर दिया। जैसे रणवीर और तोता दोनों ही किसी अदृश्य कैद में हों। नक्सल दहशत के कारण न स्कूल, न खेल- उसका बचपन जैसे छीन लिया गया हो। मेरे कैमरे ने वो दृश्य थाम लिया। 'झरोखा' कॉलम में जब वह फोटो छपी, तो विजयकांत सागर ने उसे संजो लिया। ...