गांधी का नहीं अब आंधी का देश बन गया है ये

कब तक मसीहा के पीछे भागते रहेंगे हम?
गांधी का नहीं अब आंधी का देश बन गया है ये
-फहीम खान.
कल ही लोकसभा चुनावों के नतीजे आए है. 1984 के बाद पहली मर्तबा मतदाताओं ने देश को स्थिर सरकार दी है, उसके लिए सभी बधाई के पात्र है. यह नतीजे हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए चौकाने वाले भी साबित हुए हो. लेकिन इन चुनावों के पहले जो कुछ हुआ और चुनावी प्रक्रिया के दौरान जो कुछ किया जाता रहा वह यकीनन भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मसार करने वाला ही साबित हुआ है.
इस चुनाव में करोड़ों का काला धन पानी की तरह बहाया गया है. ऐसे में नई सरकार काला धन पर चुनाव पूर्व करती आई अपने दावों पर कितना सही उतर पाती है यह देखना होगा. इस चुनाव के दौरान और अब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की जीत पर करोड़ों लोग खास कर युवा मतदाता बेहद जोश में नजर आ रहे है. यह जोश की वजह बहुत साफ नहीं है लेकिन माना जाता है कि देश के मतदाताओं ने देश की सारी समस्याओं के लिए नरेंद्र मोदी को ही रामबाण उपाय मान लिया है. राजनाथ सिंह के शब्दों में कहे तो हर मर्ज की दवा बन गए है नरेंद्र मोदी!
इस चुनाव के नतीजे मुझ जैसे व्यक्ति को यह समझाते है कि देश को नरेंद्र मोदी में अपना मसीहा दिखाई दिया है. ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिन पूर्व समाजसेवी अन्ना हजारे में दिखा था और देश के युवाओं ने अन्ना हजारे के आंदोलन को न सिर्फ बल दिया बल्कि उन्हे ‘दूसरा गांधी’ भी बना दिया था. चंद दिनों तक चला यह देश को बदल देने का आंदोलन फिर कहां चला गया? किसी को पता नहीं. अन्ना हजारे ने जो उम्मीद जगाई थी वह क्यों बुझ गई? किसी को पता नहीं. लेकिन हमने देश बदलने के लिए, देश की सारी समस्याओं की दवा अन्ना हजारे को मान लिया था.
काले धन को देश में वापस लाया जाए तो इससे देश की महंगाई, गरीबी चंद पलों में दूर हो जाएगी, यह सुनने में अच्छी लगने वाली बातें जब योगगुरू से राजनीति के गुरू बने बाबा रामदेव ने की तो फिर एक मर्तबा इस देश में बदलाव की उम्मीद करने वाले लोग और खास कर युवाओं ने बाबा रामदेव को सिर पर उठा लिया. बाबा रामदेव के नेतृत्व में दिल्ली में देश बदलने, काला धन लाने का तीव्र आंदोलन छेड़ दिया गया. बाबा रामदेव मंच से गर्जना करते रहे, लेकिन जब पुलिस की लाठी बरसी तो महिला वेश में भाग खड़े हुए. आंदोलन खत्म, मसीहा राजनीतिक मंचों पर पहुंच गया, राजनीति से प्रेरित बयानबाजी करने लगा, लेकिन देश वहीं का वहीं खड़ा रहा.
अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के ही आंदोलन के दौरान फिर देश में बदलाव, व्यवस्था में बदलाव की बात कहते हुए उम्मीदें जगा दी. अरविंद की बातों को सुन कर लगा जैसे वह हमारा मसीहा बन जाएगा. हमने फिर अरविंद का नेतृत्व स्वीकार लिया. अरविंद और उसकी टीम ने दिल्ली विधानसभा में जीत दर्ज की सत्ता में आए लेकिन चुनाव पूर्व किए वादे निभाना छोड़ कर वे भी भाग खड़े हुए.
बात इतनी भर है कि हमने कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना मसीहा माना था. गांधी के साथ कंधे से कंधा मिला कर हम चले थे तब देश भी बदला और आजादी भी मिल गई. अब न वैसे नेता है और न वैसे समाजसेवी. लेकिन हम अब भी उसी पुराने जमाने में जीना चाहते है. हमने तब भी मसीहा का इंतजार किया और आज भी वहीं करते नजर आ रहे है. हमारी यह कमजोरी कितनी ही मर्तबा हमें मायूसी दे गई है. कुछ लोगों ने खुद को हमारे सामने मसीहा जैसा दर्शाने की कोशिश की और हम भोलेपण में उन्हे मसीहा मान भी बैठे.
अब भी हम अपनी गलतियों से कुछ सीखें नहीं है. लगता है हमने मसीहा के पीछे पड़े रहने की ही ठान ली है. आज नरेंद्र मोदी हमारे लिए मसीहा बन गए है. हम मान बैठे है कि गांधी के इस देश में बदलाव की बयार नरेंद्र मोदी बहाएंगे. आरएसएस का इस चुनावी जीत के बाद बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाने से भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता... आखिर पड़े भी क्यों? हम नए मसीहा मिलने की खुशी में यह भूला देना गलत नहीं समझते कि यह देश उस गांधी का रहा है जिसने हमें शांति, प्यार और भाईचारे का संदेश दिया और उसकी निर्मम हत्या करने वाले ही आज उनके विचारों की बयार देश में चल रही है, ऐसा दावा करते नहीं थकते.... सही तो है अब यह देश गांधी का रहा ही कहा है....बस यहां आंधी ही आंधी बहने लगी है. अब तो यह कहना होगा कि यह गांधी का नहीं सिर्फ आंधी का देश बन गया है.

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