मासूमो पर कुकर्म करने वालो से रहम कैसा?
मासूमो पर कुकर्म करने वालो से रहम कैसा?
हाल के दिनों में मासूमों पर अत्याचार करने की वारदातों में कुछ ज्यादा ही इजाफा हुआ दिख रहा है. करीबी रिश्ते पर विश्वास करने वाले मासूमों पर होने वाले यह अत्याचार देखने के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसे दरिंदों के लिए कड़ी सजा की वकालत पूरा समाज एक साथ खड़ा होकर क्यों नहीं करता? महिला यौन उत्पीड़न, अत्याचार को लेकर राजनीतिक बयानबाजी होती हुई हमेशा दिखाई देती है. अपने फायदे और नुकसान को देखते हुए बलात्कार की घटना से जुड़ी पीड़िता और जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी पर राजनेता और उनके राजनीतिक दल प्रतिक्रियाएं देते दिखते है. लेकिन विडंबना यह है कि जिनके घरों में बेटिया होती है वे भी ऐसे मामलों में खुलकर बोलते नजर नहीं आते है.केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने बाल अपराधियों की उम्र को लेकर नया विवाद छेड़ दिया है. कुछ लोग उनकी राय से सहमत भी है और वकालत कर रहे है कि जघन्य अपराधों में शामिल रहने वाले बाल आरोपियों के साथ मानविय व्यवहार न करते हुए उन्हे कड़ी सजा का प्रावधान हो सके. लेकिन खुद मेनका गांधी और उनके इस मुद्दे पर समर्थकों ने कभी मासूम बच्चे और महिलाओं के साथ होने वाले बर्बरतापूर्ण, जघन्य यौन अत्याचारों के मामलों में कड़ी सजा के प्रावधान को लेकर अब तक मोर्चा क्यों नहीं खोला? राजनेताओं का यहीं ढोंगी रूप हमें बेहद खलता है. क्यों इस देश में मासूमों पर कुकर्म करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होता है?
-फहीम खान
Comments
Post a Comment