कैसे कहे, ‘नेता तुम्हीं हो कल के...’


बचपन से ही एक गीत सुनना और उसे गुनगुनाना मुझे बहुत पसंद था. उस गीत के बोल थे, ‘इंसाफ की डगर पे...बच्चों दिखाओ चल के, ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के...’ मेरी तरह शायद ये गीत आपको भी पसंद हो. लेकिन दो दिन पूर्व की एक शर्मनाक घटना और उसके बाद हमारे बेशर्म नेताओं की बयानबाजी सुनने के बाद मुझे लगने लगा है कि इस तरह के गीत अब बेमाइने हो गए है. हम हमारे बच्चों से कैसे कह दे, ‘नेता तुम्हीं हो कल के...’
समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी ने शर्मनाक बयान दिया है. उन्होंने नए साल के मौके पर बंगलुरु में लड़कियों से हुई छेड़छाड़ के लिए उनके पहनावे को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि जहां पेट्रोल होगा, वहीं आग लगेगी. वो तो यह भी कहते है कि आज मॉडर्न जमाने में जितनी औरत नंगी नजर आती है उतना उसे फैशनेबल कहा जाता है. अगर मेरी बहन-बेटी सूरज डूबने के बाद गैर मर्द के साथ 31 दिसंबर मनाए और उसका भाई या पति साथ नहीं है तो ये ठीक नहीं है. जहां पेट्रोल होगा, वहीं आग लगेगी. शक्कर गिरेगी तो चींटी जरूर आएगी. ये बयान हमारे उन नेताओं के है, जिनके नक्शे कदम पर चलकर हम हमारे बच्चों को कल के नेता बनाना चाहते है.
सिर्फ अबु आजमी ही नहीं कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वरा भी अपनी घटिया सोच को शर्मनाक बयान के रूप में प्रकट कर चुके है. ुउनका कहना है कि नए साल और क्रिसमस के अवसर पर इस तरह की घटनाएं होती हैं. युवा, जो लगभग पश्चिमी रंग में रंगे हैं, पश्चिम के लोगों की नकल करने की कोशिश करते हैं, न सिर्फ सोच-विचार में बल्कि कपड़े पहनने के तरीके में भी. यानी मंत्रीजी की नजर में छेड़छेड़ की घटना के लिए लड़कियों का पहनावा ही असल वजह बनी.


जो हुआ उस पर ध्यान नहीं

31 दिसंबर यानी न्यू ईयर के जश्न की रात हर साल की तरह बंगलुरु के एमजी रोड और ब्रिगेड रोड पर हजारों की संख्या में लड़के-लड़कियां जमा हुए थे. जश्न की तैयारियों को लेकर पूरे इलाके में तकरीबन डेढ़ हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. इसी दौरान वहां पहुंचे कुछ हुड़दंगियों ने लड़कियों के साथ जोर-जबरदस्ती की कोशिश की. मनचले उन्हें जबरन छूने लगे और उन पर अश्लील फब्तियां कसने लगे. हुड़दंगियों की वजह से वहां अफरा-तफरी मच गई. पार्टी में शामिल हुए हुड़दंगी लड़कियों को जहां-तहां हाथ लगाने लगे, महिलाओं पर फूहड़ फब्तियां कसने लगे. कुछ आरोपियों ने महिलाओं के कपड़े उतारने तक की कोशिश की. चश्मदीद तो कहते है कि महिलाएं सैंडल उतारकर मदद के लिए इधर-उधर भागने लगी. कुछ मिनटों तक चला खौफ का यह पूरा खेल पुलिस की मौजूदगी में खेला गया. वह रात जश्न की नहीं बल्कि हैवानियत के नंगे नाच की रात बन गई थी. भीड़ का फायदा उठाकर कुछ लोग राह चलती महिलाओं को जबर्दस्ती छू रहे थे, उनके शरीर को दबा रहे थे. भीड़ महिलाओं के बाल पकड़कर खींच रही रही थी और उनके कपड़े फाड़ रही थी....
उस रात वहां जो कुछ हुआ उस पर किसी नेता का ध्यान नहीं गया. किसी ने एकबार भी ये नहीं सोचा कि जिन बेटियों पर देश नाज करता है, जिन बेटियों को बचाने के लिए सरकार प्रयासरत है, हर साल विश्व महिला दिवस पर जिस नारी शक्ति को हम नमन करते है उसके साथ हुई दरिंदगी के बाद इस तरह के बयान और घटिया सोच हमें कहां ले जा रही है? इन नेताओं ने एक बार भी ये नहीं सोचा कि वहां जो कुछ हुआ उसके लिए उन हुड़दंगियों से सख्ती से निपटने के लिए प्रयास किए जाए. हमारे नेताओं की ये बयानबाजी नई पीढ़ी को मायूस करने वाली लगती है. ऐसे नेताओं को देखने और सुनने के बाद अपने बच्चों को ‘कल के नेता’ कहने से भी डर लगने लगा है.

- फहीम खान
नागपुर.

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