मनचलों के कारण बदनाम हो गया ‘रोमियो’
मनचलों के कारण बदनाम हो गया ‘रोमियो’
हमारी हर युवा पीढ़ी जिस ‘रोमियो’ से प्रेरित होकर हसीन सपनों की ‘प्रेम नगरी’ में खोये रहना चाहती है, वो ही सभी का चहेता ‘रोमियो’ इन दिनों यूपी के नए स्क्वॉड के चलते चर्चा का विषय बन गया है. मैं इस स्क्वॉड के उद्देश्य पर सवाल नहीं उठाना चाहता. मैं केवल इसके नाम पर सवाल उठा रहा हूं. मैंने अपनी कॉलेज लाइफ में शेक्सपियर के जिस रोमियो के बारे में पढ़ा था उसमें और आज जारी चर्चा वाले रोमियो में बहुत बड़ा अंतर है. ये कहे कि आज मनचलों का बंदोबस्त करने... के लिए बने इस दस्ते के नाम के कारण हर समय की युवा पीढ़ी का चहेता ‘रोमियो’ बदनाम हो गया है, हो रहा है.
‘एंटी रोमियो दल’ का गठन असल में यूपी सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए किया है. लड़कियों की छेड़छाड़ करने वाले मनचलों के खिलाफ कार्रवाई करने वाला ये दल है. ऐसे दल के गठन का स्वागत हम सभी ने करना चाहिए. लेकिन मेरा प्रश्न यहीं है, इन मनचलों को काबू करने वाले दल को एंटी रोमियो क्यों कहा जाएं? मनचले, शरारती लड़को को प्यार के लिए कुर्बान हो जाने वाले ‘रोमियो’ का नाम देना मुझे पर्सनली गलत लगता है.
कुछ बातें रोमियो के बारे में...
विलियम शेक्सपियर के क्लासिक नॉवेल 'रोमियो एंड जूलिएट' का मुख्य किरदार था रोमियो. मोंटैग्यू का बेटा रोमियो जूलिएट से मोहब्बत करता था और जैसे हर प्रेमी- प्रेमिकाएं चोरी-छिपे मिलते है वो भी वैसा ही करता था. चोरी -छिपकर ही उसने जूलिएट से ब्याह भी कर लिया था. जूलियट, रोमियो के पिता के दुश्मन की बेटी थी. रोमियो ने जब तक जूलियट से प्यार किया उसकी भनक किसी को लगने नहीं दी थी. लेकिन हालात उन दोनों प्रेमियों के खिलाफ थे. जूलिएट ने रोमियो के साथ भागने की योजना बनाई और उसी समय वो जहर पीकर मरने का नाटक करने लगी. रोमियो ने जूलिएट को असल में मृत मानकर अपनी जान कुर्बान कर ली. इसी बीच जब जूलिएट जागती है तो रोमियो को मरा देख कर वो भी खुदकुशी कर लेती है. एक अधूरी प्रेम कहानी होकर भी ये इतिहास में अमर हो जाती है. इसके बाद हर पीढ़ी के लिए रोमियो और जूलिएट आदर्श बन जाते है.
आपत्ति क्यों?
मुझे मनचलों को रोमियो कहने पर आपत्ति इसलिए है क्योंकि जहां तक मैंने रोमियो के बारे में पढ़ा है उसने कभी किसी महिला से छेड़खानी नहीं की थी. ना ही उसके द्वारा किसी का यौन उत्पीडन किए जाने का कोई रेफरंस मिलता है. रोमियो के मन में जूलियट के लिए जो प्रेम की भावना थी वो निश्चल और बेहद पवित्र थी. ऐसे में किसी सार्वजनिक स्थान, बस, ट्रेन या फिर मार्केट, कॉलेज में अगर कोई लड़की को छेड़ता है, तो उसे रोमियो कहा जाने लगता है. इस हिसाब से भारत के हर प्रांत, नगर में लाखों की संख्या में ‘रोमियो’ मिल जाते है, जिन्हें हम कभी -कभी ‘रोड़ रोमियो’ भी कह देते है. मुझे लगता है कि हम यहीं पर गलती करने जा रहे है. जो ‘रोमियो’ पीढ़ी, जाति, धर्म, देश, प्रांत की सरहदों को लांघ कर केवल और केवल पवित्र प्रेम का संदेश देता रहा है उसके नाम का ऐसा इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. फिर भी कोई नहीं मानता है तो शायद इसीलिए शेक्सपियर यह भी कह गए थे...‘नाम में क्या रखा है’
- फहीम खान
fahim234162@gmail.com
हमारी हर युवा पीढ़ी जिस ‘रोमियो’ से प्रेरित होकर हसीन सपनों की ‘प्रेम नगरी’ में खोये रहना चाहती है, वो ही सभी का चहेता ‘रोमियो’ इन दिनों यूपी के नए स्क्वॉड के चलते चर्चा का विषय बन गया है. मैं इस स्क्वॉड के उद्देश्य पर सवाल नहीं उठाना चाहता. मैं केवल इसके नाम पर सवाल उठा रहा हूं. मैंने अपनी कॉलेज लाइफ में शेक्सपियर के जिस रोमियो के बारे में पढ़ा था उसमें और आज जारी चर्चा वाले रोमियो में बहुत बड़ा अंतर है. ये कहे कि आज मनचलों का बंदोबस्त करने... के लिए बने इस दस्ते के नाम के कारण हर समय की युवा पीढ़ी का चहेता ‘रोमियो’ बदनाम हो गया है, हो रहा है.
‘एंटी रोमियो दल’ का गठन असल में यूपी सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए किया है. लड़कियों की छेड़छाड़ करने वाले मनचलों के खिलाफ कार्रवाई करने वाला ये दल है. ऐसे दल के गठन का स्वागत हम सभी ने करना चाहिए. लेकिन मेरा प्रश्न यहीं है, इन मनचलों को काबू करने वाले दल को एंटी रोमियो क्यों कहा जाएं? मनचले, शरारती लड़को को प्यार के लिए कुर्बान हो जाने वाले ‘रोमियो’ का नाम देना मुझे पर्सनली गलत लगता है.
कुछ बातें रोमियो के बारे में...
विलियम शेक्सपियर के क्लासिक नॉवेल 'रोमियो एंड जूलिएट' का मुख्य किरदार था रोमियो. मोंटैग्यू का बेटा रोमियो जूलिएट से मोहब्बत करता था और जैसे हर प्रेमी- प्रेमिकाएं चोरी-छिपे मिलते है वो भी वैसा ही करता था. चोरी -छिपकर ही उसने जूलिएट से ब्याह भी कर लिया था. जूलियट, रोमियो के पिता के दुश्मन की बेटी थी. रोमियो ने जब तक जूलियट से प्यार किया उसकी भनक किसी को लगने नहीं दी थी. लेकिन हालात उन दोनों प्रेमियों के खिलाफ थे. जूलिएट ने रोमियो के साथ भागने की योजना बनाई और उसी समय वो जहर पीकर मरने का नाटक करने लगी. रोमियो ने जूलिएट को असल में मृत मानकर अपनी जान कुर्बान कर ली. इसी बीच जब जूलिएट जागती है तो रोमियो को मरा देख कर वो भी खुदकुशी कर लेती है. एक अधूरी प्रेम कहानी होकर भी ये इतिहास में अमर हो जाती है. इसके बाद हर पीढ़ी के लिए रोमियो और जूलिएट आदर्श बन जाते है.
आपत्ति क्यों?
मुझे मनचलों को रोमियो कहने पर आपत्ति इसलिए है क्योंकि जहां तक मैंने रोमियो के बारे में पढ़ा है उसने कभी किसी महिला से छेड़खानी नहीं की थी. ना ही उसके द्वारा किसी का यौन उत्पीडन किए जाने का कोई रेफरंस मिलता है. रोमियो के मन में जूलियट के लिए जो प्रेम की भावना थी वो निश्चल और बेहद पवित्र थी. ऐसे में किसी सार्वजनिक स्थान, बस, ट्रेन या फिर मार्केट, कॉलेज में अगर कोई लड़की को छेड़ता है, तो उसे रोमियो कहा जाने लगता है. इस हिसाब से भारत के हर प्रांत, नगर में लाखों की संख्या में ‘रोमियो’ मिल जाते है, जिन्हें हम कभी -कभी ‘रोड़ रोमियो’ भी कह देते है. मुझे लगता है कि हम यहीं पर गलती करने जा रहे है. जो ‘रोमियो’ पीढ़ी, जाति, धर्म, देश, प्रांत की सरहदों को लांघ कर केवल और केवल पवित्र प्रेम का संदेश देता रहा है उसके नाम का ऐसा इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. फिर भी कोई नहीं मानता है तो शायद इसीलिए शेक्सपियर यह भी कह गए थे...‘नाम में क्या रखा है’
- फहीम खान
fahim234162@gmail.com
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