छोड़ दे सारी दुनिया राजनीति के लिए ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए....


छोड़ दे सारी दुनिया राजनीति के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए....
- कुछ समय से हम सभी की जिंदगी पर राजनीति कुछ ज्यादा ही हावी हो गई है. सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉकि चैनलों को देखने पर तो लगता है जैसे राजनीति ही सारी समस्याओं का समाधान बन गई है. क्योंकि बेरोजगारी, भूख, गरीबी, शिक्षा, अधिकार, रोजगार, महिला सुरक्षा आदि विषयों पर कोई चर्चा करता ही नहीं है. बस किसी न किसी राजनीतिक दल का झंडा उठाए बे सिर पैर की बहस में कूद पड़ता है. राजनीति जरूरत से ज्यादा हावी हो जाने से सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म इन दिनों मानो जंग के मैदान से लगने लगे है. ऐसे में राजनीतिक दलों के नाम पर बंटे दोस्तों की ‘सोशल लाइफ’ भी बिगड़ती जा रही है. लोग अपने ही दोस्तों से दूरी बना रहे है, या दूरी बनाने की सोचने लगे है. ऐसा क्या हो रहा है कि हमें अपने ही लोगों से दूरी बनाने के बारे में सोचना पड़ रहा है? क्या चुनाव इसी मर्तबा आए है? इससे पहले कभी चुनाव नहीं होते थे? देश आजाद होने के बाद से अबतक कितने ही चुनाव हुए, लेकिन क्या कभी किसी को ऐसे अपनों से ही दूरी बनाने के बारे में सोचना पड़ा होगा?
शरद पवार की बायोग्राफी हाल के दिनों में पढ़ी मैंने. पवार साहब की मां लेफ्ट विचारों की समर्थक थी. जबकि पवार साहब कांग्रेसी विचार के. मां चाहती तो पवार साहब से दूरी बना सकती थी और शायद पवार साहब भी अपनी मां से दूरी बना सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक ही छत के नीचे दो राजनीतिक विचारधाराएं समान सम्मान के साथ चलती रही और रिश्ता भी अटूट बना रहा. दोस्तों, जरा सोचिए, मेरे घर में मेरे पिता, मां, बहन, भाई, भाभी, मेरी बीवी और बेटी अगर अलग -अलग राजनीतिक विचारों को अपनाकर चलने लगे तो मुझे या किसी को इसमें दिक्कत क्यों होनी चाहिए? राजनीतिक विचारधारा हमारे रिश्तों के आड़ क्यों आनी चाहिए? सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर आपने जिन्हें अपना मित्र बनाया है, उनसे कटने और उन्हें दूर करने की बात मत सोचिए, रिश्ता निभाकर देखीए. क्योंकि चुनाव तो आते -जाते रहेंगे, जिनके लिए आप रिश्ते खराब करने पर तुले है वह तो ‘हाईली पेड सेवक’ है. सरकारी सुविधा, निधि खर्च करने पर भारी कमीशन, जिंदगी भर पेंशन आदि सुविधाएं लेकर वह आपको भूला देंगे. चुनाव के बाद आप, आपका परिवार, मित्र, समाज को ही मिलकर चलना है. एक -दूसरे के काम आना है, सुख -दुख को बांटना है. फिर दूरी बनाने की सोचना ही क्यों?
अब बात तस्वीर की....
ये जो तस्वीर मैंने शेयर की है, यह मुझे सोशल मीडिया से ही मिली है. केरल की सड़कों पर कुछ युवा एक कार में विभिन्न राजनीतिक दलों के झंडे लेकर निकल पड़े. सारी ही खुश थे और जिंदगी को एन्जॉय करते नजर आए. एक संदेश जो उन्होंने इस तस्वीर से देने की कोशिश की है वह यही है कि...‘‘छोड़ दे सारी दुनिया राजनीति के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए....
- फहीम खान

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