आखिर नागपुर में जनता कर्फ्यू से हासिल क्या हुआ?


शनिवार, रविवार को आहुत कर्फ्यू को सहयोग नहीं देना किसे महंगा पड़ेगा? 

ये बात बिल्कुल सच है कि नागपुर शहर और जिले में कोरोना संक्रमण को लेकर  हालात बेहद खराब हो गए है. अस्पतालों में इलाज करने वालों की तो हालत और भी खराब हो गर्ई है. जिन्हें जरूरी जांच बताई जा रही है उन्हें संक्रमित होने के बावजूद भी जांच के लिए लैब के चक्कर काटना पड़ रहा है. कई लोग तो संक्रमित होकर भी आधा आधा दिन लैब में भीड़ होने की वजह से बैठे रहते है. 

शायद बढ़ती मौतें और तेजी से बढ़ रहा संक्रमण देखकर ही हाल में नागपुर के महापौर संदीप जोशी ने मनपा मुख्यालय में बैठक बुलाई होगी. इस बैठक के बाद महापौर ने यह घोषणा भी कर दी कि नागपुर में अब सितंबर के माह में हर शनिवार और रविवार को जनता कर्फ्यू रखा जाएगा. इसका पालन सभी को करना होगा. जो नहीं करेगा उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. जिस दिन कर्फ्यू की घोषणा हुई उस दिन लोग काफी चिंता में थे. लोगों को कार्रवाई का डर सता रहा था सो दुकान बंद रखने का निर्णय भी ले लिया. 

दांव ही उल्टा पड़ गया

अगले ही दिन सोशल मीडिया में एक मैसेज वायरल हो गया. ये मैसेज था नागपुर महानगर पालिका के आयुक्त राधाकृष्णण बी. का. उन्होंने अपने इस मैसेज में साफ कर दिया कि लोग उन्हें पूछ रहे है कि क्या जनता कर्फ्यू को सहयोग नहीं देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी? इस पर मनपा आयुक्त ने कहा कि कर्फ्यू का आदेश मनपा ने अधिकृत तौर पर नहीं निकाला है. ये स्व्ोच्छा कर्फ्यू होगा. फिर क्या था दुकानदारों ने जमकर दुकान खोल दिए. लोगों की भीड़ सड़कों पर निकल आई मानो त्यौहार ही मना रहे हो. होना क्या था महापौर का दांव की उल्टा पड़ गया. 

पुलिस का भी असहयोग 

इसी बीच शहर पुलिस की ओर से एक प्रेसनोट जारी कर दी गई और यह कहा गया कि मनपा प्रशासन ने जनता कर्फ्यू के लिए अधिकृत पत्र जारी नहीं किया है. ये कर्फ्यू स्वेच्छा है. इसलिए इसे सहयोग नहीं देने वालों पर पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करेगी. फिर क्या था पुलिस ने जैसे ही कहा कि कार्रवाई नहीं की जाएगी तो लोग निडर होकर जनता कर्फ्यू के दौरान निकल पड़े. 

क्या हासिल हुआ? 

इस जनता कर्फ्यू की घोषणा किसने की ये यदि नजरअंदाज कर दे तो क्या आम नागरिकों की ये जिम्मेदारी नहीं थी कि जिन्हें जरूरी नहीं था वे अपने घरों में रहते. क्या ये जरूरी नहीं था कि इन दो दिनों तक हम बिना किसी काम के सड़क पर नहीं निकलते. यदि ऐसा हम कर लेते तो क्या फर्क पड़ जाता? असल में कोरोना संक्रमण का सीधा असर ही आम नागरिकों पर ज्यादा पड़ा है. ऐसे में हर आम नागरिक की ये जिम्मेदारी थी कि वे जनता कर्फ्यू का लाभ उठाकर सहयोग कर देते. केवल दो दिनों से संक्रमण रूक जाएगा, ऐसा भी नहीं है. लेकिन जरूरत नहीं होकर भी केवल घरों से बाहर निकलना और घुमते रहना भी कहा की समझदारी है भला? 

- फहीम खान

Comments

Popular posts from this blog

कौन रोकेगा, ये दक्षिण गढ़चिरोली का "लाल सलाम" ?

नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के काम आया ‘जनजागरण’ का हथियार

कैसे कहूं मैं... नेता तुम्हीं हो कल के