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Showing posts from October, 2020

ऐसा सिर्फ प्रकाश आमटे ही कर सकते है...

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45 सेकंड तक नदी में शीर्षासन करना इतना आसान नहीं - फहीम खान  हाल में सोशल मीडिया में एक वीडियो और तस्वीर तेजी से वायरल हुई. ये तस्वीर थी विख्यात समाजसेवी रमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता तथा पद्मश्री डॉ. प्रकाश आमटे की. उन्होंने नदी के पानी के भीतर 45 सेकंड तक अपनी सास रोककर शीर्षासन किया. उनका ये वीडियो उनके बेटे अनिकेत आमटे ने सोशल मीडिया में शेयर करने के बाद से ही खूब वायरल हो रहा है. इसे देखने वाला हर शख्स आश्चर्यचकित है. लेकिन जिन्होंने डॉ. प्रकाश आमटे को करीब से देखा है, वो भलीभांति जानते है कि केवल प्रकाश आमटे ही ऐसा कर सकते है. क्योंकि ऐसा करने के लिए जो साहस और सब्र लगता है, वो इसी शख्स में हो सकता है.  बता दे कि प्रकाश आमटे विख्यात समाजसेवी बाबा आमटे के बेटे है और महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले की भामरागढ़ तहसील के हेमलकसा में लोकबिरादरी प्रकल्प के माध्यम से आदिवासियों की सेवा में खुद को समर्पित कर चुके है. प्रकाश आमटे का स्वभाव बेहद शांत किस्म का है. उनमें इतना संयम भरा हुआ है कि शायद ही किसी शख्स में इतना संयम कभी दिखाई दे. मैंने अपने गढ़चिरोली और चंद्रपुर के कार्यकाल के दौरान डॉ. प्

मैं और मेरे गांधी...

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by  फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  2 अक्तूबर 1869 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ और 30 जनवरी 1948 को उनकी निर्मम हत्या के बाद वो हमें छोड़कर चले गए. लेकिन क्या वजह है कि गांधी हमारे बीच में नहीं होकर भी उनके हमेशा आस -पास होने का अहसास होता रहता है. गांधी को चाहने वाले और उनका विरोध करने वाले जितनी संख्या में है, उससे कई गुणा अधिक संख्या में ऐसे लोग इस दुनिया में है जो गांधी  को अपना ही एक हिस्सा मानते है. ये वो लोग है जिन्होंने गांधी को सिर्फ पढ़ा या  सुना नहीं है...बल्कि एक अदृश्य गांधी को पूरी ईमानदारी के साथ अपने जीवन का अंग बना लिया. शायद उन्हीं लोगों में मैं भी शुमार होता हूं. मेरे गांधी औरों के गांधी से इसीलिए अलग भी है.  बात वर्ष 1995 की है, जब मैं चंद्रपुर जिले के सिंदेवाही में रहता था. कक्षा 9 वीं में पढ़ रहा था और अचानक से मेरे जीवन में ऐसा पल आया जब मैंने अपने साथ गांधी को महसूस किया. सिर्फ महसूस नहीं बल्कि मैंने गांधी को अपने साथ बात करता हुआ भी पाया. सिंदेवाही -नागभीड़ मार्ग पर एक छायादार पेड़ हुआ करता था. इवनिंग वॉक करता हुआ जब इस पेड़ के नीचे मैं बैठता तो घंटों मैंने