कब तक यूं ही बहता रहेगा निर्दोषों का खून?


छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नक्सलियों ने जवानों से भरी बस को ब्लास्ट कर उड़ाने के बाद छत्तीसगढ़ के ही बिजापुर जिले के टेकलगुडा के जंगल में नक्सलियों से हुई मुठभेड़ दौरान किए गए विस्फोट में 23 जवान शहीद हुए. इनमें से 21 जवानों के ही शव बरामद किए गए. इस वारदात के पहले जो नक्सलियों ने हमला किया था उसमें छत्तीसगढ़ पुलिस के 5 जवान शहीद हो गए और 10 से ज्यादा घायल हुए. नारायणपुर जिले में कड़ेमेटा और कन्हरगांव के बीच नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के बस को बारूदी सुरंग में विस्फोट कर उड़ा दिया.

फिर एक बार नक्सलियों द्वारा सुरक्षा बलों के खिलाफ में मोर्चाखोला गया है. पिछले कुछ समय से देश के ज्यादातर नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस और सुरक्षा बल नक्सलियों पर भारी पड़ता नजर आ रहा था. इसी दौरान पुलिस की कोशिशे रंग लाने लगी और कई नक्सली नेताओं सहित महत्वपूर्ण नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है. देश के अलग अलग इलाकों से इस तरह की खबरें आ रही थी. लेकिन छग में लगातार यह दो  दु:खद घटना घटी. 

क्या यह हताशा का परिणाम है? 

पिछले कुछ समय से सुरक्षा बलों की लगातार की जा रही कार्रवाई से देश के ज्यादातर इलाकों में नक्सलियों के पैर उखड़ने लगे हैं. बावजूद इसके छग में जो दो वारदातों को अंजाम दिया गया है, यह घटनाए नक्सलियों की हताशा का परिणाम लगती है. छत्तीसगढ़ में बीते एक वर्ष के दौरान नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के जवानों पर तीसरा बड़ा हमला किया है. इससे पहले पिछले वर्ष 21 मार्च को नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला कर दिया था. इस हमले में डीआरजी के 12 जवानों समेत 17 जवान शहीद हो गए थे.

महत्वपूर्ण सवाल

नक्सलियों के सक्रीय होने या न होने से अब आम नागरिकों को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन उनकी सक्रीयता जब किसी की जान लेने पर आमादा हो जाती है तो फिर इससे दहशत फैलने लगती है. लोग नक्सलियों की इसी बात से नाराज है. एक दबाव गुट के रूप में लोगों ने हमेशा से नक्सलियों का स्वीकार किया. लेकिन जब बात खून बहाने पर आ जाती है. हिंसा फैलाने पर नक्सली संगठन आमादा हो जाता है. तो फिर आम नागरिक नक्सलियों के हितैषी कैसे बनकर रह सकते है?

महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित गढ़चिरोली, गोंदिया जिले में सुरक्षा बल और स्थानीय पुलिस बल, सी 60 के जवानों की लगातार कोशिशों से आज नक्सलवादियों पर लगाम लगी हुई है. लेकिन छग में जारी यह नक्सली हिंसा, उनका खूनी उत्पात इन दोनों जिलों की पुलिस और यहां पर तैनात सुरक्षा बलों के लिए भी सिरदर्द बन सकता है. छग की यह वारदातें महाराष्ट्र पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए भी सतर्क हो जाने की निशानी है. उन्हें अपने अभियानों में और ज्यादा सतर्कता बरतने और नक्सलियों की अगली रणनीति को समझने की जरूरत है. 

-@फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर. 

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