क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया है?

- मासूम बच्चियों तक को बलात्कार का बनाया जा रहा है शिकार

by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर. 

आज की दुनिया में जिस तेजी से महिला अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं, वह हमें एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करती हैं। चाहे वो सड़क हो, घर हो, या कार्यस्थल, महिलाओं और मासूम बच्चियों के साथ हो रहे अत्याचार और हिंसा की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। मासूम बच्चियों तक को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है, जो समाज के नैतिक पतन का जीता-जागता उदाहरण है। यह सवाल उठता है कि हमारे समाज में किस तरह की मानसिकता विकसित हो रही है, जहां दया, करुणा, और मानवीयता की जगह क्रूरता, हिंसा और दरिंदगी ने ले ली है?


शैतान बनना हमेशा आसान रहा है, क्योंकि उसमें संवेदनाओं की जगह स्वार्थ और हिंसा की प्रधानता होती है। लेकिन इंसान बने रहना, संवेदनशील और न्यायप्रिय बने रहना, क्या आज के दौर में इतना मुश्किल हो गया है? समाज का यह अंधकारमय पक्ष हमारे सभ्य समाज होने पर सवाल खड़े करता है। क्या हमारा समाज अब इतना संवेदनहीन हो गया है कि मासूमों की चीखें भी हमें झकझोर नहीं पातीं?


महिला अत्याचार की घटनाएं सिर्फ अपराध नहीं हैं, यह हमारे समाज के नैतिक और सांस्कृतिक पतन की कहानी भी कहती हैं। यह कहानी सिर्फ कुछ दरिंदों की नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था की है, जो इन अपराधों को रोकने में असफल रही है। इसके लिए सिर्फ कानून की सख्ती ही नहीं, बल्कि समाज में नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों का पुनरुद्धार भी आवश्यक है।


हमें सोचना होगा कि हम अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा और संस्कार दे रहे हैं। क्या हम उन्हें यह सिखा पा रहे हैं कि दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अपनी खुशियों का?

समय आ गया है कि हम समाज के इस दर्पण में अपनी असली तस्वीर देखें और सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाएं। इंसान बने रहना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं। हमें सिर्फ अपनी सोच और मानसिकता को सकारात्मक दिशा में मोड़ने की जरूरत है।


@फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर. 

fahim234162@gmail.com

Twitter- @FaheemLokmat

Facebook- https://www.facebook.com/fahimkhan7786

Instagram- https://www.instagram.com/fahimkhan_gad/?hl=en

Comments

Popular posts from this blog

कौन रोकेगा, ये दक्षिण गढ़चिरोली का "लाल सलाम" ?

नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के काम आया ‘जनजागरण’ का हथियार

कैसे कहूं मैं... नेता तुम्हीं हो कल के