क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया है?
- मासूम बच्चियों तक को बलात्कार का बनाया जा रहा है शिकार
by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.
शैतान बनना हमेशा आसान रहा है, क्योंकि उसमें संवेदनाओं की जगह स्वार्थ और हिंसा की प्रधानता होती है। लेकिन इंसान बने रहना, संवेदनशील और न्यायप्रिय बने रहना, क्या आज के दौर में इतना मुश्किल हो गया है? समाज का यह अंधकारमय पक्ष हमारे सभ्य समाज होने पर सवाल खड़े करता है। क्या हमारा समाज अब इतना संवेदनहीन हो गया है कि मासूमों की चीखें भी हमें झकझोर नहीं पातीं?
महिला अत्याचार की घटनाएं सिर्फ अपराध नहीं हैं, यह हमारे समाज के नैतिक और सांस्कृतिक पतन की कहानी भी कहती हैं। यह कहानी सिर्फ कुछ दरिंदों की नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था की है, जो इन अपराधों को रोकने में असफल रही है। इसके लिए सिर्फ कानून की सख्ती ही नहीं, बल्कि समाज में नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों का पुनरुद्धार भी आवश्यक है।
समय आ गया है कि हम समाज के इस दर्पण में अपनी असली तस्वीर देखें और सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाएं। इंसान बने रहना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं। हमें सिर्फ अपनी सोच और मानसिकता को सकारात्मक दिशा में मोड़ने की जरूरत है।
@फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.
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