लाख टके की बात : ये सफर नहीं आसान, गड्ढों का दरिया है और उछलते जाना है...
- फहीम खान
नागपुर... हमारी उपराजधानी, संतरे के स्वाद जैसी मीठी पहचान वाला शहर… पर इन दिनों सड़कों की हालत कड़वे सच जैसी हो चली है. हर तरफ गड्ढे ही गड्ढे. कोई सड़क पूछिए, कोई इलाका चुनिए, जवाब में दर्द मिलेगा. और ये दर्द अब केवल वाहन के टायरों का नहीं, सीधे आम नागपुरवासी के शरीर और मन का है.
हर सुबह जब कोई बाइक पर ऑफिस के लिए निकलता है या बच्चा स्कूल की बस में बैठता है, तो उनकी रीढ़, उनकी गर्दन, उनके कंधे इन झटकों को झेलने के लिए मजबूर होते हैं. डॉक्टर कहते हैं, रीढ़ की हड्डी शरीर का आधार है, और ये झटके उसी आधार को तोड़ने का काम कर रहे हैं. हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ जगताप बताते हैं कि सड़क पर हर उछाल, हर गड्ढा रीढ़ पर दबाव बनाता है. नतीजा? कमर दर्द, गर्दन की अकड़न, कलाई का सूजना, और स्लीप डिस्क जैसी तकलीफें.
बात यहीं खत्म नहीं होती. जब आंखें सड़क के हर गड्ढे को तलाशने में जुट जाएं, तो सिर दर्द और आंखों की थकान लाज़िमी हो जाती है. और जब शरीर थकने लगे, तो मन भी थक जाता है. जनरल फिजिशियन डॉ. पिनाक दंदे कहते हैं, हर रोज गड्ढों से जूझता ड्राइवर सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक थकान भी झेल रहा होता है. और ये थकान धीरे-धीरे तनाव, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन में बदल सकती है.
सोचिए, कैसी विडंबना है, सड़कें गड्ढों से भरी हैं और हम बीमारियों से. क्या हम इसी नागपुर की कल्पना करते हैं, जो स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल है? अब समय आ गया है, जब प्रशासन को समझना होगा कि ये सिर्फ टूटी सड़कें नहीं, ये नागरिकों के स्वास्थ्य का सवाल है. इन सड़कों पर चलकर हम किसी मंजिल तक नहीं, शायद अस्पताल पहुंचने लगे हैं. जब सड़कों की खामोशी हमारे शरीर की चीख बन जाए, तो बदलाव जरूरी हो जाता है. सुनिए प्रशासन और सरकार! हमारे शहर की गड्ढों से भरी पड़ी इन सड़कों को सुधारिए, नागपुर को फिर से चलने और बिना उछले वाहन चलाने लायक बनाइए.
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