मिग-21 को काॅफिन कहकर नाइंसाफी की गई
- वीर चक्र से सम्मानित एयर मार्शल हरीश मसंद से लोकमत समाचार की बातचीत
अलविदा ‘टाइगर’ : पार्ट-1
मिग -21 जैसा लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना के बेड़े में हमेशा होना चाहिए. इस विमान ने वायुसेना के जांबाज फाइटर पायलटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों को धूल चटाई है. लेकिन बावजूद इसके मिग-21 को काॅफिन कहा गया. यह असल में इस विमान के साथ नाइंसाफी ही थी. जो ऐसा कहते थे उन्होंने कभी इसकी खूबियों को जानने की कोशिश नहीं की, और न ही उन्होंने कभी दूसरे विमानों के साथ तुलना में आंकड़े ही पेश किए. यह कहना है वीर चक्र से सम्मानित भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल हरीश मसंद का.
एयर मार्शल मसंद ने कहा कि वे 67 कमिशन्ड अफसर हैं. उन्होंने वैसे तो जरा देरी से ही भारतीय वायुसेना के पहले सुपर सोनिक विमान मिग-21 को उड़ाना शुरू किया था लेकिन अपने सेवाकाल के दौरान उन्होंने लगातार पांच साल में करीबन 1003 घंटे की मिग-21 की उड़ान का अनुभव जरूर लिया है. भारतीय वायुसेना के अन्य लड़ाकू विमानों को भी उड़ाने का उन्हें अनुभव रहा, लेकिन उनका मानना है कि आसमान में जिस जाबांजी के साथ यह विमान अपने टारगेट को अंजाम देता था, उसका कोई जवाब नहीं. 28 स्क्वाड्रन को मिग-21 उड़ाने की जिम्मेदारी मिली. पहली स्क्वाड्रन होने से उसका नाम भी सुपर साेनिक रखा गया था. 1986-87 में सौभाग्य से मैंने इसी स्क्वाड्रन को कमांड किया. मिग-21 हंटर और सुखोई से अगल इस मायने में थे कि यह ऐसा एक लड़ाकू विमान था जो जल्दी से 40-50 हजार फुट की ऊंचाई पर चला जाए और ऊपर पहुंचते ही दो मिसाइल से फायर करें और अपना टारगेट पूरा कर तुरंत लौट आए. इसी खासियत की वजह से दुनियाभर में 13 हजार के करीब मिग -21 बने थे.
डिजाइन भी खास था
डेल्टा प्लेटफार्म पर बने, पतली विंग और राॅकेट जैसे बने मिग-21 का असल में यही काम था कि फायटर पायलट उसमें उड़ान भरे, ऊंचाई पर पहुंचकर फायर करें और पलक झपकते ही लैंट कर दें. ग्राउंड अटैक के लिए यह विमान बना ही नहीं था, हालांकि भारतीय वायुसेना में इसने हमेशा इस तरह के काम भी खुद को साबित कर दिखाया है. मिग-21 की सबसे बड़ी खूबी ही यही थी कि वह एक समय के बाद पायलट के लिए खुद ही ट्रेनर बन जाता है. वह पायलट को ऐसी-ऐसी चीजें सिखा देता है, जो पायलट को कभी पता ही नहीं थी. मसंद का कहना है कि यही कारण था कि उन्होंने अपनी 40 साल की पूरी सर्विस में कोई हादसा नहीं देखा.
ट्रेनिंग जहाज और मिग-21 में बड़ा अंतर
उन्होंने कहा कि वैम्पायर, एचजेटी-16 किरण जैसे विमानों में भारतीय वायुसेना के पायलट ट्रेनिंग लेकर आते थे. जिनकी रफ्तार बड़ी मुश्किल से 242 नाॅट्स पर माइल हुआ करती थी. लेकिन ट्रेनिंग से निकलकर जब वे मिग-21 को उड़ाते थे तो उसकी रफ्तार 600 नाॅट्स पर माइल तक हुआ करती थी. इसी के साथ लैंडिंग स्पीड में भी इन विमानों की तुलना में मिग-21 की रफ्तार ज्यादा हुआ करती थी. इसलिए यह विमान हमेशा पायलट के लिए चुनौती तो था ही, बावजूद इसके जब पायलट इसे समझने की कोशिश करता, तो यह खुद ही पायलट को इतना सहायता करने लगता जैसे कोई ट्रेनर अपने ट्रेनी को करता है.
अडवांस जेट ट्रेनर की कमी खूब खली
हंटर पुराना हो गया तो 90 में हंटर था नहीं तो पायलट को सीधे मिग-21 पर भेजना पड़ा. जबकि यह विमान पायलट की ट्रेनिंग के लिए नहीं बना था, यह तो खास मिशन के लिए लाया गया था. लेकिन मजबूरी थी कि पायलट को सीधे मिग-21 जैसे सुपर सोनिक विमान को ही ट्रेनिंग जहाज जैसे इस्तेमाल करना पड़ा. हालांकि जब 2005-06 में हाॅक विमान वायुसेना में शामिल हुए तो फिर मिग-21 पर सीधे पायलट को भेजना बंद हुआ. विकल्प नहीं होने की वजह से करीबन 14-15 सालों तक ऐसा होता रहा, ऐसे में कई हादसे हुए तो बदनाम मिग-21 होता गया. उसे काॅफिन कहे जाने का एक कारण यह भी बना. बिना अनुभवी पायलटों को मिग-21 जैसे विमानों पर ट्रेनिंग देना भी हादसों का कारण बना. साथ ही मिग के अन्य वेरियंट (मिग-23, 25, 27 और 29) का भी हादसा होने पर नाम बदनाम मिग-21 होता रहा.
- फहीम खान, सीनियर जर्नलिस्ट, नागपुर
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