देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान...

फिर एक बार मुझे वह दूरदर्शनवाला जमाना याद आने लगा है. फिर एक बार जेहन में वहीं दूरदर्शन का विज्ञापन चलने लगा है, जो कहता था- ‘शैतान बनना आसान है, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल है?’. इस बार नागपुर शहर में घटीे दो घटनाएं इसके पीछे की मुख्य वजह बनी है. पहला मामला शहर के अथर्व नगरी परिसर का है जहां के निवासी अरमान खान के निवास में एक नाबालिग बंधक बालिका चार साल से नारकीय जीवन बीता रही थी. और अरमान, उसकी पत्नी हीना और साला अजहर उस बालिका को कहते थे कि, ‘तुझे खरीद कर लाए हैं तो मार भी सकते हैं.’ दूसरा मामला है वड़धामना इलाके में एक 4 वर्षीय बालक को क्रूरतापूर्वक सिगरेट के चटके लगाकर अमानवीय यातना देने का. बालक की मां के साथ आरोपी संकेत रमेश उत्तरवार ‘लिव इन रिलेशन’में रहता था. 


हुड़केश्वर की इस दस साल की बालिका को बंधक बनाकर यौन शोषण किए जाने के प्रकरण में गिरफ्तार प्रापर्टी डीलर अरमान खान को हुड़केश्वर थाने में वीआईपी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही थी. यह बात तो और भी चौंकाने वाली है. मतलब अरमान, उसकी पत्नी और साला जितना बेरहम था उतनी ही शैतानी हरकत पुलिस के अधिकारी ने भी की है. खान दंपति 2019 में इस बालिका को बेंगलुरु से खरीदकर लाए थे. बालिका के माता-पिता को शिक्षा दिलाने का झांसा दिया था. स्कूल भेजने की बजाय घर के काम कराते थे और गलती होने पर गर्म तवे और सिगरेट से शरीर पर चटके लगाते थे. इस मामले में नाबालिग का यौन शोषण करने के भी सबूत मिले है. 

वाड़ी के वड़धामना इलाके में एक 4 वर्षीय बालक को क्रूरतापूर्वक सिगरेट के चटके लगाकर अमानवीय यातना देने का मामला अब उजागर हुआ है. महिला को एक छह साल और एक चार साल ऐसे दो बच्चे हैं. पति की आत्महत्या के बाद से बच्चों की मां आरोपी संकेत के साथ रहती थी. इसके चलते दोनों बच्चे भी संकेत को ‘पापा’ कहकर पुकारते थे. लेकिन संकेत दोनों बच्चे उसके नहीं होने से बालकों से दुर्व्यवहार किया करता था. कुछ दिनों पहले संकेत ने चार वर्षीय बालक को सिगरेट से चटके देने की शुरुआत की थी. इसके कारण बच्चे संकेत से डरते थे. उनका उपचार भी नहीं किया जाता था. इस पूरे मामले में बूरी बात ये है कि संकेत के बच्चों को चटके देने पर भी उनकी मां कभी विरोध नहीं करती थी. 

इन दोनों ही मामलों के उजागर होने के बाद से ही मुझे इंसानों के तेजी से शैतान बनते जाने पर वाकई में हैरत होने लगी है. एक तरफ हम सभी लोग पहले से ज्यादा धार्मिक, सामाजिक, रईस हो चले है. सोशल मीडिया के आने के बाद से तो हम लोग ज्यादा ही ‘हुशार’ भी हो गए है. बावजूद इसके हमारी भीतर की इंसानियत न जाने क्यों तेजी से खोती जा रही है. हमें दूसरों को यातना देते वक्त, दूसरों के दर्द से कुछ फर्क नहीं पड़ता है. जबकि धर्म के नाम पर हम पहले के मुकाबले ज्यादा कट्टर हो गए है. यानी धर्म भी हमें इंसान बनाए रखने में कम पड़ता दिख रहा है. ये किस तरह की हरकत है हम इंसानों की, जिसमें बच्चों, महिला, बच्चियों को परेशान करना, शोषण करने में मजा आता है. कभी हम अपनी दादी -नानी की कहानियों में शैतानों की कहानियां सुनते थे तो लगता था कि क्या कोई इतना बड़ा शैतान भी हो सकता है? लेकिन आज इस तरह इंसानों की खाल में छीपे भेड़ियों को देखता हूं तो लगता है कि दादी -नानी की कहानियों के वह बड़े शैतान भी इनके सामने बौने पड़ जाएंगे. हाड़ -मास के साथ भावनाओं वाले हम इंसान इतनी निच हरकतों पर उतर आएंगे, ऐसा शायद ही कभी किसी ने सोचा होगा. 

इन दोनों घटनाओं को देखने के बाद मुझे 1958 की  फिल्म - नास्तिक में प्रदीप कुमार द्वारा लिखित और गाया गया ये गीत याद आ रहा है. पढ़ीए... सोचिए... ‘इंसान बने रहना, इतना मुश्किल है?’


‘‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,

कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान,

सूरज ना बदला, चाँद ना बदला,ना बदला रे आसमान,

कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान ||


आया समय बड़ा बेढंगा,आज आदमी बना लफंगा,

कहीं पे झगड़ा,कहीं पे दंगा,नाच रहा नर होकर नंगा,

छल और कपट के हांथों अपना बेच रहा ईमान,

कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान ||


राम के भक्त,रहीम के बन्दे,रचते आज फरेब के फंदे,

कितने ये मक्कार ये अंधे,देख लिए इनके भी धंधे,

इन्हीं की काली करतूतों से हुआ ये मुल्क मशान,

कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान ||


जो हम आपस में ना झगड़ते,बने हुए क्यूँ खेल बिगड़ते,

काहे लाखो घर ये उजड़ते,क्यूँ ये बच्चे माँ से बिछड़ते,

फूट-फूट कर क्यों रोते प्यारे बापू के प्राण,

कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान ||’’


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