शैतान बनना आसान है, लेकिन इंसान बने रहना क्या इतना मुश्किल है?

by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर. 

ये वह लाईन है जिसे मैंने अपने बचपन के दिनों में दूरदर्शन के किसी विज्ञापन में सुना था. बचपन में सुनी हुई यह लाइन मेरे मन -मस्तिष्क पर ऐसे अंकित हो गई है कि मैं अपनी निजी जिंदगी में भी खुद को कई बार किसी भी तरह के कृत्य से पहले यह सवाल जरूर करता हूं. मेरा यह मानना है कि हम सभी लोगों ने हर समय खुद को यह सवाल हमेशा पूछना चाहिए कि शैतान बनना आसान है, लेकिन इंसान बने रहना क्या इतना मुश्किल है? 


आज यह सवाल मेरे मन में आया ही इसलिए क्योंकि ताजा उदाहरण था पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश का. एमपी के सीधी इलाके में पीड़ित दशमत रावत पर आरोपी प्रवेश शुक्ला पर पेशाब कर दिया. यह मामला तूल पकड़ा तो सरकार ने आरोपी पर कड़ी कार्रवाई कर दी. इसे लेकर जो राजनीति होनी थी वह हुई भी और अभी भी हो रही है. राजनीति से इतर मैं बात एक इंसान की और उसकी इंसानियत की करना चाहता हूं. इस घटना ने मुझे दूरदर्शन की वह पुरानी एड याद दिला दी. शैतान बन कर एक पीड़ित पर पेशाब करना आसान है, लेकिन क्या प्रवेश शुक्ला के लिए इंसान बने रहना इतना मुश्किल था? इस मामले में इंसानियत तार -तार इसलिए हुई क्योंकि प्रवेश शुक्ला को राजनीतिक बैक ग्राउंड की वजह से यह गुमान हो गया था कि वह कोई भी ओंछी हरकत करेगा तो भी उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. हो सकता है कि कानून और पुलिस और सरकार कमजोर भी साबित हो जाए, लेकिन खुद नैतिक स्तर पर प्रवेश को ऐसा क्यों नहीं लगा कि उसके लिए शैतान बनना आसान था, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया था?  


ऐसा नहीं है कि एमपी में हुआ यह कांड ही मुझे इंसान बने रहने की मुश्किलात समझा रहा है. इससे पहले दिल्ली के महरौली इलाके में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपनी ही प्रेमिका श्रद्धा वालकर की निर्मम हत्या कर दी. हत्या भी ऐसी कि आफताब ने श्रद्धा की लाश ठिकाने लगाने की सोची और आरी से श्रद्धा के शरीर के करीब 35 टुकड़े कर डाले. आरोपी आफताब ने श्रद्धा के शव के टुकड़ों को एक-एक करके 18 दिन तक महरौली के जंगलों में फेंकता रहा. आरोपी इतना शातिर था कि 18 दिनों तक श्रद्धा के शव के टुकड़ों में से बदबू ना आए, इसके लिए उसने बाजार से एक बड़ा फ्रिज खरीदा और उस फ्रिज में श्रद्धा के शव के टुकड़ों को रखा था. इतनी क्रुरता, इतनी शैतानी हरकत. सवाल फिर वही, आफताब के लिए शैतान बनना आसान था, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया था?  


मुंबई में एक आरोपी मनोज साने ने अपनी लिव इन पार्टनर  सरस्वती वैद्य की हत्या कर दी. आरोपी ने पेड़ काटने वाले कटर से अपनी लिव इन पार्टनर के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर लाश को ठिकाने लगाने की कोशिश की. सोसाइटी के रहवासियों ने पुलिस को बताया कि आरोपी को दो-तीन दिनों में कुत्तों को कुछ खिलाते देखा गया. इन लोगों ने बताया कि आरोपी को पहले ऐसा करते कभी नहीं देखा गया था. इस मामले में यह भी जानकारी सामने आई कि आरोपी ने शव के टुकड़े कर कुकर में उबाले. कथित तौर पर शव के टुकड़ों को मिक्सर में पीसकर ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी. फिर एक बार यहां आरोपी मनोज साने को लेकर वहीं सवाल दोहराना पड़ेगा. मनोज के लिए शैतान बनना आसान था, लेकिन क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया था?  

@फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.

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