Posts

मिग-21 : 2400 घंटे की उड़ान उम्र वाले जहाज ने भरी 4000 घंटों की उड़ान

Image
अलविदा ‘टाइगर’ : पार्ट-2 - वायुसेना के इंजीनियरों का कमाल, 20- 22 साल से बढ़ा दी विमान की उम्र रशिया ने जिस मिग-21 लड़ाकू विमान को 2400 घंटों की उड़ान या 40 साल उम्र बताकर भारत को बेचा था, उसी विमान की कार्यक्षमता को समय-समय पर बढ़ाकर भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों ने करीबन 4000 घंटों की उड़ान भरी और इस विमान की उम्र 20-22 साल से बढ़ा दी. ऐसा कारनामा करने वाली दुनिया में भारत की ही एकमात्र वायुसेना और उसके इंजीनियर हैं. यह कहना है भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल हरीश मसंद का. वे लोकमत समाचार से मिग-21 की विदाई के अवसर पर बात कर रहे थे. उनका कहना है कि यदि भारतीय चाहें तो क्या कुछ कर गुजर सकते हैं, इसका प्रमाण ही मिग-21 विमान है. ऐसा इसलिए कि हमने मिग-21 को जब खरीदा तो धीरे-धीरे हमें उसमें कुछ कमिया नजर आईं. जैसे उसमें गन नहीं थी, अकेली मिसाइल थी. भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों की तारीफ होनी चाहिए कि उसमें गोंडोला गन लगाई गई. भारत ने मिग-21 का जिस तरीके से इस्तेमाल किया है, वह कहीं पर भी रशिया द्वारा बनाए गए विमान के हिसाब से नहीं था. हमने काफी हद तक आगे बढ़कर इसका अल...

मिग-21 को काॅफिन कहकर नाइंसाफी की गई

Image
- वीर चक्र से सम्मानित एयर मार्शल हरीश मसंद से लोकमत समाचार की बातचीत अलविदा ‘टाइगर’ : पार्ट-1 मिग -21 जैसा लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना के बेड़े में हमेशा होना चाहिए. इस विमान ने वायुसेना के जांबाज फाइटर पायलटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों को धूल चटाई है. लेकिन बावजूद इसके मिग-21 को काॅफिन कहा गया. यह असल में इस विमान के साथ नाइंसाफी ही थी. जो ऐसा कहते थे उन्होंने कभी इसकी खूबियों को जानने की कोशिश नहीं की, और न ही उन्होंने कभी दूसरे विमानों के साथ तुलना में आंकड़े ही पेश किए. यह कहना है वीर चक्र से सम्मानित भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल हरीश मसंद का. एयर मार्शल मसंद ने कहा कि वे 67 कमिशन्ड अफसर हैं. उन्होंने वैसे तो जरा देरी से ही भारतीय वायुसेना के पहले सुपर सोनिक विमान मिग-21 को उड़ाना शुरू किया था लेकिन अपने सेवाकाल के दौरान उन्होंने लगातार पांच साल में करीबन 1003 घंटे की मिग-21 की उड़ान का अनुभव जरूर लिया है. भारतीय वायुसेना के अन्य लड़ाकू विमानों को भी उड़ाने का उन्हें अनुभव रहा, लेकिन उनका मानना है कि आसमान में जिस जाबांजी के साथ यह विमान अपने टार...

लाख टके की बात : ये सफर नहीं आसान, गड्ढों का दरिया है और उछलते जाना है...

Image
- फहीम खान नागपुर... हमारी उपराजधानी, संतरे के स्वाद जैसी मीठी पहचान वाला शहर… पर इन दिनों सड़कों की हालत कड़वे सच जैसी हो चली है. हर तरफ गड्ढे ही गड्ढे. कोई सड़क पूछिए, कोई इलाका चुनिए, जवाब में दर्द मिलेगा. और ये दर्द अब केवल वाहन के टायरों का नहीं, सीधे आम नागपुरवासी के शरीर और मन का है. हर सुबह जब कोई बाइक पर ऑफिस के लिए निकलता है या बच्चा स्कूल की बस में बैठता है, तो उनकी रीढ़, उनकी गर्दन, उनके कंधे इन झटकों को झेलने के लिए मजबूर होते हैं. डॉक्टर कहते हैं, रीढ़ की हड्डी शरीर का आधार है, और ये झटके उसी आधार को तोड़ने का काम कर रहे हैं. हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ जगताप बताते हैं कि सड़क पर हर उछाल, हर गड्ढा रीढ़ पर दबाव बनाता है. नतीजा? कमर दर्द, गर्दन की अकड़न, कलाई का सूजना, और स्लीप डिस्क जैसी तकलीफें. बात यहीं खत्म नहीं होती. जब आंखें सड़क के हर गड्ढे को तलाशने में जुट जाएं, तो सिर दर्द और आंखों की थकान लाज़िमी हो जाती है. और जब शरीर थकने लगे, तो मन भी थक जाता है. जनरल फिजिशियन डॉ. पिनाक दंदे कहते हैं, हर रोज गड्ढों से जूझता ड्राइवर सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक थकान भी...

लाख टके की बात : जहां फ्लाईओवर हैं, वहां समस्या क्यों है?

Image
– फहीम खान एक समय ऐसा था जब शहर में सिर्फ पांचपावली फ्लाईओवर था, तब लोग उसे देखकर हैरत में पड़ जाते थे. आज हालात ऐसे हैं कि नागपुर ‘फ्लाईओवरों का शहर’ बनता जा रहा है, लेकिन इन फ्लाईओवर की डिजाइन ऐसी उलझी हुई है कि जितनी राहत मिलनी चाहिए थी, उससे ज्यादा परेशानी और सवाल खड़े हो गए हैं. हैरानी इस बात की नहीं कि शहर में तेजी से एक के बाद एक फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं, बल्कि इस बात की है कि हर फ्लाईओवर की शुरुआत में ही कोई न कोई गड़बड़ी सामने आती है. कभी डिजाइन बदलना पड़ता है, कभी आर्म की दिशा, कभी स्पैन गिर जाता है, तो कहीं फ्लाईओवर धंस जाता है. सदर का रेसिडेंसी रोड फ्लाईओवर 15 साल पहले बन जाना चाहिए था. लेकिन पहले होटल के पास लैंडिंग रखी, फिर केपी ग्राउंड की ओर मोड़ा गया और आज करोड़ों की लागत से दोबारा आर्म बनाई जा रही है. मतलब शुरुआत की प्लानिंग इतनी कच्ची थी कि अब इसे सुधारने में दोगुना खर्च आ रहा है. क्या जनता के पैसों से ऐसे प्रयोग होते रहेंगे? अमरावती रोड के फ्लाईओवर की लंबाई पहले 2 किमी थी, बाद में इसे 500 मीटर बढ़ाया गया. बूटीबोरी फ्लाईओवर के धंसने की घटना को एक भारी ट्रक पर थोपना ...

लाख टके की बात : 102 साल के विश्वविद्यालय को आखिर क्यों नहीं मिल रहा कप्तान?

Image
- फहीम खान राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय की पहचान केवल एक शिक्षण संस्था के रूप में नहीं है, बल्कि यह मध्य भारत की शैक्षणिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना का केंद्र भी है. सन 1923 में स्थापित यह विश्वविद्यालय आज 100 वर्ष से अधिक का हो चुका है. लेकिन ऐसी प्रतिष्ठित संस्था में एक वर्ष से स्थायी कुलपति की गैरमौजूदगी शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गहरी चिंता का विषय है. दिवंगत कुलपति डॉ. सुभाष चौधरी के निलंबन और बाद में असामयिक निधन के बाद से यह पद रिक्त पड़ा है. कभी डॉ. प्रशांत बोकारे को अस्थायी रूप से जिम्मेदारी दी गई, फिर यह कार्यभार प्रशासनिक अधिकारी माधवी खोड़े को सौंपा गया. लेकिन स्थायित्व नाम की चीज अब तक नदारद है. अब सोचिए, 500 से ज्यादा संबद्ध महाविद्यालय, 4 लाख से अधिक छात्र, दर्जनों विभाग और रिसर्च प्रोजेक्ट, और इन सबका कोई स्थायी कप्तान ही नहीं! यह कोई सामान्य लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी उदासीनता है. जब देश शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की बात कर रहा है, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की जा रही है, विश्वविद्यालयों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना...

लाख टके की बात : पुराने वीडियो वायरल करने की आखिर जरूरत ही क्या थी?

Image
– फहीम खान पिछले हफ्ते नागपुर में हुई मूसलधार बारिश ने एक बार फिर से ‘स्मार्ट सिटी’ के दावों को पानी में बहा दिया. बारिश से जलजमाव हुआ, सड़कों पर गाड़ियां डूबी नजर आईं और कुछ इलाकों में तो हालात इतने बिगड़े कि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें नाव लेकर लोगों को उनके घरों से निकालने पहुंचीं. सवाल यह है कि हर साल यही होता है, तो फिर हर बार की तैयारी अधूरी क्यों होती है? अगर 200 मिमी बारिश में ही शहर बिखर जाए, तो स्मार्ट कहे जाने का क्या औचित्य है? हर साल जिन इलाकों में पानी भरता है, इस बार भी वही हुआ, तो क्या प्रशासन ने कुछ भी नहीं सीखा? टैक्स वसूलने में मनपा कभी पीछे नहीं रहती, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा की जिम्मेदारी से हाथ पीछे खींच लेती है. लेकिन इस बार प्रशासन की लापरवाही के साथ एक और चिंता की बात सामने आई, दो साल पुराने वीडियो का वायरल खेल. सोशल मीडिया पर शहर के कुछ तथाकथित 'इंफ्लुएंसर्स' ने 2023 की बाढ़ के वीडियो को 2025 की बारिश बताकर फैलाया. ये वीडियो न सिर्फ भ्रामक थे, बल्कि शहर की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले भी थे. क्या ये सब जानबूझकर हुआ? सिर्फ कुछ ‘लाइक’ और...

लाख टके की बात : ऑपरेशन थंडर: अब दिखावे से आगे बढ़ने की जरूरत

Image
- फहीम खान नागपुर सिटी पुलिस का "ऑपरेशन थंडर 2025" एक सराहनीय और दूरदर्शी पहल रही. पूरे सप्ताह चले इस नशा विरोधी अभियान में जनप्रतिनिधियों से लेकर आम नागरिक, छात्र, एनजीओ, शिक्षक, पुलिसकर्मी और विशेषज्ञों तक सभी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. नुक्कड़ नाटक, रैलियां, पोस्टर प्रतियोगिताएं, रील्स, जागरूकता सत्रों से लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन तक, हर पहलू पर काम हुआ. पुलिस आयुक्त डॉ. रवींद्र सिंगल की अगुआई में शहर ने एकजुट होकर संदेश दिया कि अब नशे के खिलाफ आवाज उठानी होगी. लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ जागरूकता से नशे का कारोबार रुकेगा? शहर के कॉलेज, स्कूल, गलियों और ठिकानों पर नशे की खुलेआम बिक्री हो रही है. अफसोस की बात है कि पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी अधिकतर मामलों में सिर्फ दिखावटी कार्रवाई होती है. ड्रग माफिया पुलिस की लापरवाही और कुछ लोगों की मिलीभगत से निडर होकर युवाओं की नसों में खुलेआम जहर घोल रहे हैं. "ऑपरेशन थंडर" तब सफल माना जाएगा जब इस शहर में स्कूल- कॉलेज के युवाओं को नशे की गिरफ्त में करने वाले और बेखौफ ड्रग्स बेचने वालों को जड़ से उखाड़ फेंका जाएगा. म...