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एआई तकनीक: वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं

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by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तकनीक ने हाल के वर्षों में बहुत प्रगति की है। आज, एआई हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एआई के विभिन्न उपयोग जैसे कि वॉइस असिस्टेंट (जैसे कि सिरी और एलेक्सा), स्पैम फिल्टरिंग, पर्सनलाइज्ड कंटेंट रिकमेंडेशन, स्वचालित ड्राइविंग, और स्वास्थ्य देखभाल में बीमारी का निदान आदि ने इसे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बना दिया है। एआई मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग जैसे तकनीकों के माध्यम से लगातार सीख और विकसित हो रहा है, जिससे यह और भी स्मार्ट और उपयोगी होता जा रहा है। भविष्य में एआई की संभावनाएँ भविष्य में, एआई के कारगर साबित होने की संभावनाएँ अनगिनत हैं। चिकित्सा क्षेत्र में, एआई का उपयोग कैंसर जैसे गंभीर रोगों का प्रारंभिक चरण में पता लगाने और उपचार करने के लिए किया जा सकता है। शिक्षा में, यह छात्रों के लिए पर्सनलाइज्ड लर्निंग अनुभव प्रदान कर सकता है। एआई का उपयोग स्मार्ट सिटी और स्मार्ट घरों को विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है, जो ऊर्जा बचाने और सुरक्षा में सुधार करने में मदद करेंगे। व्यवसायों के लिए, ए

क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल हो गया है?

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- मासूम बच्चियों तक को बलात्कार का बनाया जा रहा है शिकार by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  आज की दुनिया में जिस तेजी से महिला अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं, वह हमें एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करती हैं। चाहे वो सड़क हो, घर हो, या कार्यस्थल, महिलाओं और मासूम बच्चियों के साथ हो रहे अत्याचार और हिंसा की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। मासूम बच्चियों तक को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है, जो समाज के नैतिक पतन का जीता-जागता उदाहरण है। यह सवाल उठता है कि हमारे समाज में किस तरह की मानसिकता विकसित हो रही है, जहां दया, करुणा, और मानवीयता की जगह क्रूरता, हिंसा और दरिंदगी ने ले ली है? शैतान बनना हमेशा आसान रहा है, क्योंकि उसमें संवेदनाओं की जगह स्वार्थ और हिंसा की प्रधानता होती है। लेकिन इंसान बने रहना, संवेदनशील और न्यायप्रिय बने रहना, क्या आज के दौर में इतना मुश्किल हो गया है? समाज का यह अंधकारमय पक्ष हमारे सभ्य समाज होने पर सवाल खड़े करता है। क्या हमारा समाज अब इतना संवेदनहीन हो गया है कि मासूमों की चीखें भी हमें झकझोर नहीं पातीं? महिला अत्याचार की घटनाएं सिर्फ अपराध नहीं ह

लोकसभा चुनावों में भारतीय वायुसेना ने निभाई अहम भूमिका

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- वायुसेना के विमानों ने 1000 घंटे से अधिक की उड़ान भरी  - चुनाव प्रक्रिया में कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे वायुसैनिक  भारतीय वायु सेना के परिवहन और हेलीकॉप्टर बेड़े युद्ध और शांतिकाल में अक्सर किसी न किसी कार्य में जुटे हुए नजर आते हैं. वायु रखरखाव, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों के दौरान लड़ाकू सैनिकों की एयरलिफ्ट द्वारा हमारे सैनिकों के रखरखाव की शांतिकालीन भूमिका के अलावा, राष्ट्र निर्माण की दिशा में अनेक कार्य भी वायुसेना के माध्यम से किए जाते हैं, हम सभी इससे भलीभांति परिचित है.  लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि भारतीय वायुसेना विशेष रूप से नागरिक सहायता में सबसे आगे रही है. हाल के आम चुनाव-2024 के दौरान, पिछले कुछ महीनों में मीडियम लिफ्ट हेलीकॉप्टरों (एमआई-17 वैरिएंट), हल्के उपयोगी हेलीकॉप्टरों (चेतक) और स्वदेशी रूप से निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टरों (एएलएच) ध्रुव द्वारा पर्याप्त उड़ान कार्य किए गए हैं. चुनाव प्रक्रिया के दौरान वायुसेना बेडे के यह हवाईयान बेहद मददगार साबित हुए है.  ईवीएम की एयरलिफ्टिंग भारतीय वायुसेना इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की एयरलिफ्टिंग कर

सिंगापुर में पैदल चलने वालों का होता है इतना सम्मान, दिल जीत लिया इस खासियत ने

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by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  अपने अनुशासन और सुचारू यातायात व्यवस्था के लिए दुनियाभर में जाना जाने वाला सिंगापुर एक ओर बात के लिए विख्यात है. सिंगापुर की सड़कों को पार करते समय पैदल चलने वालों को इतना ज्यादा सम्मान दिया जाता है कि उनके एक इशारे पर वाहन तत्काल रूक जाते है. जी हां, सिंगापुर के चौराहों पर कहीं पर भी आपको कोई यातायात पुलिस कर्मी नजर नहीं आता है. लेकिन ऑटोमैटिक सिग्नल सिस्टम की वजह से यातायात सुचारू होता रहता है.  हाल में लोकमत मीडिया समूह की ओर से सिंगापुर में लोकमत इकॉनॉमिकल कंवेंशन का आयोजन किया गया था. इस उपलक्ष्य में सिंगापुर कुछ दिन गुजारने मिले. इस दौरान सिंगापुर की इस खासियत को करीब से देखने और समझने मिला. सिंगापुर की यातायात व्यवस्था ने मुझे भारत के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को और बेहतर तरीके से अंमल में लाने की आईडिया दे दी. असल में इस तरह का ट्रैफिक सिस्टम हर उस महानगर में होना जरूरी है जिसे हम ‘स्मार्ट सिटी’ कहते है. स्मार्ट सिटी में स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम का होना वहां के नागरिकों के प्रति सम्मान के तौर पर देखा जा सकता है.  सिंगापुर में सभी सिग्नलों पर जेब्रा क

आता स्टेटस पुरताच उरला गुलाब...

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कधी प्रेम दिनाला माझ्या बागेतील तो गुलाब  फुलायचा फक्त तुझ्यासाठी  सकाळच्या सोनेरी सूर्यकिरणांमध्ये न्हाहून ताजा होताच पोहोचायचा झाडावरून माझ्या बॅगेत कॉलेजात आल्या -आल्याच तो गुलाब तुला भेटायला आतुर असायचा भेट व्हायची तुझी -त्याची तेव्हा तो हसायचा मग थेट तुझ्या केसांमध्येच जावून बसायचा आता ही प्रेम दिनी माझ्या बागेत माझा गुलाब तसाच फुलतो मात्र तो तुझ्या विना तसाच झाडावर सुकुन जातो... त्याचे मोबाईल मध्ये काढलेले फोटो तेव्हढे  माझ्या मोबाइलच्या स्टेटस मध्ये खुलून दिसतात... ते ही फक्त तुझ्याच साठी... - by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  @फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  fahim234162@gmail.com Twitter- @FaheemLokmat Facebook- https://www.facebook.com/fahimkhan7786 Instagram- https://www.instagram.com/fahimkhan_gad/?hl=en

नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के काम आया ‘जनजागरण’ का हथियार

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 by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  1980 से महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में नक्सलियों ने कदम रखे और अगले दो दशक में नक्सलियों की हिंसा और उत्पात का सीधा टार्गेट ही पुलिस दल बनता रहा. एक के बाद एक, इतनी बड़ी वारदातों को नक्सलियों ने अंजाम दिया कि एक ही दशक में गढ़चिरोली पुलिस दल ने अपने सैकड़ों जांबाजों को खो दिया. लेकिन बावजूद इसके गढ़चिरोली पुलिस ने जो ‘जनजागरण अभियानों’ का सिलसिला जारी रखा, वहीं नक्सलियों के खात्मे के लिए सबसे प्रभावी हथियार साबित हुआ.  गढ़चिरोली में ‘जनजागरण अभियानों’ का ये दौर वह था जब नक्सलियों के खिलाफ शस्त्रों के साथ ही गढ़चिरोली पुलिस सोशल मुद्दों को लेकर भी लड़ती हुई दिखाई दी. इन ‘जनजागरण अभियानों’ के माध्यम से सुदूर इलाकों के आदिवासी और ग्रामीणों को पहली बार प्रशासन और सरकार का दीदार हुआ. सरकारी योजनाएं पता चली और उन्हें यह विश्वास हुआ कि ‘सिस्टम’ उतना खराब नहीं है, जैसा उन्हें नक्सलियों द्वारा बताया जाता रहा है. उन्होंने इसी दौरान पहली बार जिलाधिकारी, जिला परिषद के सीईओ जैसे बड़े अधिकारियों को देखा, उनके मिले और अपनी बात भी रख सके. यह ऐसा मौका था जब आदिवासी,

उमंग-भारतीय सेना और स्थानीय अधिकारियों के बीच एक रणनीतिक पुल

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 उमंग-भारतीय सेना और स्थानीय अधिकारियों के बीच एक रणनीतिक पुल - लोकमत समाचार की उमंग के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एस. के. विद्यार्थी से विशेष बातचीत फहीम खान नागपुर : जब कोई नागपुर के सीताबर्डी किला क्षेत्र या कस्तूरचंद पार्क के सामने से गुजरता है, तो उसे एक रक्षा प्रतिष्ठान दिखाई देता है, जिस पर उत्तर महाराष्ट्र और गुजरात (उमंग) उपक्षेत्र लिखा हुआ है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां तैनात सेना के जवानों की क्या भूमिका है? सब एरिया के कामकाज को समझने के लिए लोकमत समाचार की टीम ने उमंग सब एरिया का हाल में दौरा किया और उत्तर महाराष्ट्र और गुजरात सब एरिया (उमंग), नागपुर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एस. के. विद्यार्थी, एवीएसएम, एसएम के साथ अनौपचारिक बातचीत की. उपक्षेत्र की भूमिका और जिम्मेदारियों का परिचय देते हुए मेजर जनरल विद्यार्थी ने कहा कि यह उपक्षेत्र, स्थानीय अधिकारियों और भारतीय सेना के बीच एक पुल की तरह है. भारत का भौगोलिक केंद्र नागपुर में होने के कारण इसकी गुजरात राज्य और उत्तर महाराष्ट्र के क्षेत्र की देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका है. चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मेज