लाख टके की बात : जहां फ्लाईओवर हैं, वहां समस्या क्यों है?
– फहीम खान
एक समय ऐसा था जब शहर में सिर्फ पांचपावली फ्लाईओवर था, तब लोग उसे देखकर हैरत में पड़ जाते थे. आज हालात ऐसे हैं कि नागपुर ‘फ्लाईओवरों का शहर’ बनता जा रहा है, लेकिन इन फ्लाईओवर की डिजाइन ऐसी उलझी हुई है कि जितनी राहत मिलनी चाहिए थी, उससे ज्यादा परेशानी और सवाल खड़े हो गए हैं. हैरानी इस बात की नहीं कि शहर में तेजी से एक के बाद एक फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं, बल्कि इस बात की है कि हर फ्लाईओवर की शुरुआत में ही कोई न कोई गड़बड़ी सामने आती है. कभी डिजाइन बदलना पड़ता है, कभी आर्म की दिशा, कभी स्पैन गिर जाता है, तो कहीं फ्लाईओवर धंस जाता है.
सदर का रेसिडेंसी रोड फ्लाईओवर 15 साल पहले बन जाना चाहिए था. लेकिन पहले होटल के पास लैंडिंग रखी, फिर केपी ग्राउंड की ओर मोड़ा गया और आज करोड़ों की लागत से दोबारा आर्म बनाई जा रही है. मतलब शुरुआत की प्लानिंग इतनी कच्ची थी कि अब इसे सुधारने में दोगुना खर्च आ रहा है. क्या जनता के पैसों से ऐसे प्रयोग होते रहेंगे? अमरावती रोड के फ्लाईओवर की लंबाई पहले 2 किमी थी, बाद में इसे 500 मीटर बढ़ाया गया. बूटीबोरी फ्लाईओवर के धंसने की घटना को एक भारी ट्रक पर थोपना कितना आसान था, लेकिन असली वजह तो कैंटिलीवर डिजाइन में ही थी. तभी अब उस हिस्से से भारी क्या, हल्के वाहन भी नहीं गुजरते. सवाल तो बनता है, फिर बनाया ही क्यों?
म्हालगी नगर प्रोजेक्ट की शुरुआत में ही डिजाइन पर आशंका थी, जिसे बाद में बदला गया. चिंचभुवन आरओबी को तैयार होने में 6 साल लगे, क्योंकि हर कदम पर माथापच्ची चलती रही. अजनी में अंग्रेजों के जमाने का पुल अब टूटा-फूटा पड़ा है, और जो केबल स्टेयड ब्रिज बन रहा है, वह भी डिजाइन की उलझनों में ही अटका पड़ा है. आधे से ज्यादा काम भी अब तक नहीं हुआ. भारतनगर चौक पर फ्लाईओवर का स्पैन गिरना, टेकड़ी फ्लाईओवर का तोड़ा जाना, ये सभी घटनाएं बताती हैं कि बात सिर्फ निर्माण की नहीं, समझदारी की है. फ्लाईओवर बनते समय जल्दबाजी दिखाना या कागजी प्लानिंग पर ही भरोसा करना अब सरकार की जेब और शहरवासियों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है.
दु:ख की बात ये है कि ये गलती सिर्फ इंजीनियरिंग की नहीं, बल्कि उस सोच की है जिसमें जनता की सुविधा से ज्यादा ठेके और फाइलों की दौड़ को तरजीह दी जाती है. सड़क चौड़ीकरण जैसे काम सालों से अटके पड़े हैं, पुराना भंडारा रोड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. सवाल उठता है कि क्या सिर्फ फ्लाईओवर बनाना ही विकास है, या फिर सही फ्लाईओवर, सही समय पर, सही दिशा में बनाना ज्यादा जरूरी है?
सरकार और प्रशासन को अब इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचना होगा. सिर्फ उद्घाटन की तारीखें तय करने से बेहतर होगा कि पहले डिजाइन, जरूरत और सुरक्षा की समीक्षा की जाए. फ्लाईओवर राहत की सांस देने वाले हों, न कि शहरवासियों और वाहन चालकों के लिए वह बोझ बन जाए. नागपुर के लोग अब काफी समझदार हो गए हैं, उन्हें दिखता है कि कौन-सा फ्लाईओवर वाकई जरूरी था और कौन-सा सिर्फ बजट का जुगाड़. वक्त आ गया है कि अब शहर में किसी भी नए निर्माण को आरंभ करने से पहले उसकी स्मार्ट प्लानिंग, सही डिजाइन पर जोर दिया जाए.
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