महिलाओं की पृथक सूची तो बन ही सकती थी

महिलाओं की पृथक सूची तो बन ही सकती थी

संत गाडगेबाबा और राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की कर्म स्थली होने से अमरावती में सामाजिक आंदोलनों की अपेक्षाएं अधिक होना स्वाभाविक है. रविवार को इस महानगर के वड़ाली इलाके की महिलाओं ने वाकई में नया इतिहास लिखा है. पिछले चार -पांच माह से चला आ रहे आंदोलन के कारण आखिरकार महिलाओं की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा. रविवार को शराब दुकान हटाने के लिए मतदान कराया गया. शराब की दुकान बचाने वालों की ओर से हर तरह के हथकंड़े अपनाए गए. 50 फीसदी वोटिंग न हो सके इसके लिए भी हर तरीके से बंदोबस्त कराया गया. लेकिन रविवार को जिस उत्साह से महिलाएं मतदान केंद्रों पर पहुंची है उसे देखते हुए यह कहना होगा कि अब महानगर के अन्य शराब दुकानदारों ने भी इससे सबक ले लेना चाहिए. इस पुरी प्रक्रिया में जितनी सराहना महिलाओं की करनी होगी उतनी ही आलोचना प्रशासन की करनी ही पड़ेगी. क्योंकि जिस चुनाव की घोषणा इतने दिन पूर्व हो चुकी है उसके सिर्फ 4,500 महिला वोटरों की पृथक सूची बनाने की किसी अधिकारी को क्यों नहीं सुझी? शराब दुकान बंद कराने का अधिकार महिलाओं को हमारे संविधान के तहत दिया गया है. इसी के तहत उन्हे वोटिंग का अधिकार भी दिया गया. लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर चुनाव प्रक्रिया संभालने वाले अधिकारियों ने वैसे गंभीरता क्यों नहीं दिखाई? यदि इस प्रभाग की 4,500 वोटरों के नाम छांटकर पृथक सूची बनाई गई होती तो 12 केंद्रों पर रविवार को नाम तलाशने के लिए महिलाओं को अलग -अलग केंद्रों के चक्कर काटने नहीं पड़ते. इसी तरह प्रशासन की एक ओर मामले में गलती हुई है, जिसे स्वीकार करना ही पड़ेगा. यदि इस चुनाव के लिए मतदाता सूची तय कर ली गई थी तो वह सूची चुनाव पूर्व ही शराब विरोधी कार्यकर्ताओं को क्यों नहीं सौंप दी गई. जब राजनीतिक दलों को सूचियां उपलब्ध कराई जा सकती है तो शराब का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को क्यों नहीं?

कोशिश हारती नहीं...

लेकिन इस चुनाव से महिलाएं मायूस न हो. क्योंकि उन्होने जो हिम्मत दिखाई है, जो उदाहरण पेश किया है उसकी गूंज अब आने वाले दिनों में अन्य स्थानों पर भी जरूर सुनाई देगी. हम यह न सोचे कि चुनाव प्रक्रिया में हार हुई है या जीत. हमें यह देखना होगा कि गलत चीजों का विरोध करने की हमारी पहल ने कितने लोगों के भीतर यह जज्बा पैदा किया है. कल तक शराब दुकान से हो रही परेशानी को खामोशी से सहने वाली महिलाओं ने भी इस मतदान में शामिल होकर शराब के खिलाफ उठी आवाज में अपनी आवाज मिला दी है. यह कामयाबी इस आंदोलन का ही नतीजा है.

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