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Showing posts from January, 2018

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हमारे पूर्वज गधे थे...!

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हमारे पूर्वज गधे थे...! विख्यात वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है. विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना. डार्विन को इसीलिए मानव इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. लेकिन आधुनिक युग के ‘पढ़त मुर्खों’ की बयानबाजी सुनने के बाद लगता है कि डार्विन जैसे विख्यात वैज्ञानिकों के विकासवाद का सिद्धांत पूरी तरह गलत था. डार्विन के अनुसार आज के हम सभी मनुष्य बंदरों का विकसित रूप है. समय अनुसार हुए परिवर्तन के साथ हम में ये बदलाव आया. लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी तथा पीएचड़ी धारी वर्तमान केंद्रीय मंत्री सतपाल सिंह जी की माने तो डार्विन का ये सिद्धांत न सिर्फ गलत है बल्कि वैज्ञानिकों के नाम पर जो विज्ञान की बातें अबतक हमें पाठ्यक्रमों में बतलाई जाती रही है, वो साफ झूठ थी. सतपाल सिंह जी अकेले ऐसे ‘पढ़त मुर्ख’ होते तो ऐसा शीर्षक लिखने की जरूरत नहीं होती. लेकिन क्या करें हर दिन कोई न कोई केंद्रीय मंत्री, विधायक, सांसद, न्यायाधीश अपनी ‘अकल बांटने’ निकल पड़ता है. कल ही की बात है, एक न्यायाधीश ने कहा था कि ‘मोर के आंसू पीकर म

अब डिमांड में सउदी मांझा

अब डिमांड में सउदी मांझा - बरेली मांझे के भी अच्छे दिन - पर नायलॉन मांझा मांगते हैं ग्राहक हालांकि मकर संक्रांति को अब गिनती के दिन बचे हैं. पर अभी से शहर में पतंगबाजी चरम पर पहुंच रही है. लेकिन इस बीच चायनीज मांझे से हादसे भी शुरू हो गए हैं. उधर शहर के पतंग बाजार में विक्रेता चायनीज मांझा बेचे जाने से इनकार कर रहे हैं. जबकि अब भी पतंगबाज खुलेआम चायनीज मांझे का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस बार कार्रवाई के डर से नायलॉन मांझे की बजाय विक्रेताओं द्वारा सऊदी मांझा ज्यादा बेचा जा रहा है. वहीं बरेली के मांझे की पुरानी डिमांड भी धीरे -धीरे लौटती नजर आ रही है. पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट. ---- सऊदी मांझा में क्या है खास? पतंगबाजार के विक्रेताओं का कहना है कि इस बार जो ग्राहक उनसे चाइनीज मांझा मांग रहे हैं, उन्हें वो सऊदी और बरेली मांझा दे रहे हैं. वैसे तो बरेली मांझा चाइनीज मांझा का इस्तेमाल बढ़ने से पहले काफी फेमस हुआ करता था. लेकिन सऊदी मांझा इसी साल बाजार में आया है. आते ही ये धूम मचा रहा है. एक विक्रेता के अनुसार ये मांझा बरेली के मांझे की तरह है लेकिन ये 9 और 1

कंस्ट्रक्शन साइट पर खतरों के खिलाड़ी

कंस्ट्रक्शन साइट पर खतरों के खिलाड़ी - सेफ्टी नॉर्म्स की ऐसी तैसी किसी भी कंस्ट्रक्शन साइट के लिए भारत सरकार ने कई सारे सेफ्टी नॉर्म्स तय किए है. उम्मीद ये की जाती है कि कम से कम सरकारी विभागों से जुड़े कामों के दौरान तो इन सेफ्टी नॉर्म्स का पालन किया जाए. लेकिन सरकारी इंजीनियर्स और अधिकारियों की लापरवाही और अनदेखी के चलते आज धड़ल्ले से सुरक्षा की अनदेखी की जा रही है. बात शहर में चल रहे कंस्ट्रक्शन की ही लीजिए. मामला नेशनल हाइवे एथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचआई) द्वारा बनाए जा रहे लिबर्टी से पागलखाना चौक फ्लाईओवर का है. यहां खुलेआम नियमों की अनदेखी होती दिखाई दे रही है. लेकिन किसी विभाग का इस ओर ध्यान नहीं जा रहा है. पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट. --- लिबर्टी से छावनी चौक से पागलखाना चौक और छावनी से पुराना काटोल नाका चौक तक लंबे फ्लाईओवर के लिए पिलर बनाने का काम इन दिनों तेजी से किया जा रहा है. उम्मीद भी जताई जाने लगी है कि इसी साल के अंत तक शायद इस फ्लाईओवर का पूरा काम भी हो जाए. लेकिन जिस रफ्तार से इस फ्लाईओवर के पिलर का काम जारी है उसी रफ्तार से इस कंस्ट्रक्शन साइट पर सुरक्षा नियमों क

45 हजार में बन जाते है साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट

45 हजार में बन जाते है साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट - ट्रेनिंग के बाद जॉब दिलाने का दे रहे झांसा --- साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट बनने का सुनहरा अवसर होने का विज्ञापन देकर पहले तो बेरोजगार युवाओं को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया और फिर इन युवाओं को आकर्षक पेमेंट के जॉब का सब्जबाग दिखाया गया. जब इनमें से ज्यादातर जॉब के झांसे में आ गए तो उन्हें जॉब दिलाने के पहले ट्रेनिंग अनिवार्य होने की जानकारी दी गई. इसके लिए इन युवाओं से 45 हजार रुपए मांगे गए. मतलब 45 हजार देकर साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट बनाने का ये धंधा खुलेआम शहर पुलिस के साइबर सेल के लिए चुनौती बन गया है. मेट्रो एक्सप्रेस ने इस गोरखधंधे की इंवेस्टिगेशन की और पहुंच गई उनके अलग -अलग ठिकानों पर. पेश है ये खास रिपोर्ट. ---- क्या है मामला? विदर्भ रिजन के नागपुर, गोंदिया, भंडारा, गढ़चिरोली, वर्धा, यवतमाल, चंद्रपुर और अमरावती जिलों में साइबर एक्सपर्ट की नियुक्ति करने संबंध में एक विज्ञापन इंडियन साइबर सिक्योरिटी एंड रिसर्च लैब के नाम से दिया गया था. 24 दिसंबर से 28 दिसंबर तक करीबन 150 युवाओं के खामला स्थित कार्यालय में इंटरव्यू भी लिए गए. एमई के

...तो समस्या ‘कमर’ से थी?

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...तो समस्या ‘कमर’ से थी? एक्टर फरदिन खान और एक्ट्रेस करीना कपूर की फिल्म ‘खुशी’ में बड़ा फेमस डॉयलॉग था कि ‘मैंने कमर नहीं देखी’. हमने हिंदी फिल्मों के ‘कमर’ वाले गित बहुत सुन रखे है. हिरोइन की ‘पतली कमर’ से ‘बलखाती कमर’ थियेटर में बतौर दर्शक हमें रोके रखने में बड़ा रोल अदा करती आई है. लेकिन अब क्या सुन रहे है कि हिरोइन की ‘कमर’ से ही कुछ लोगों को प्रॉब्लेम होने लगा है. हाल में भंसाली जी की हिंदी फिल्म ‘पद्मावती’ विवाद में घिर गई. विवाद ऐसे उठा और बढ़ता गया कि इसे रिलीज होने ही नहीं देने तक करनी सेना की हिम्मत बढ़ गई. पहले तो पद्मावती का नाम बदल कर पद्मावत कर दिया गया. फिर भी जब विरोध नहीं थमा और विभिन्न राज्य सरकारों ने इस फिल्म के प्रदर्शन पर बैन लगा दिया तो आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने दर्शकों को ये राहत तो दे दी है कि फिल्म तो रिलीज होकर ही रहेगी. इसके बाद भी एक दर्शक के तौर पर मैं बहुत खुश नहीं हूं. अरे जनाब, पहले तो इस फिल्म में घूमर डांस को लेकर ही विरोध के सूर उठते रहे. बाद में घूमर डांस के समय फिल्म में हिरोइन की कमर दिखाई देती है, इस पर भी ‘सैनिकों’ को ऐतराज होने लगा. ‘घूमर’ को