अब डिमांड में सउदी मांझा

अब डिमांड में सउदी मांझा
- बरेली मांझे के भी अच्छे दिन
- पर नायलॉन मांझा मांगते हैं ग्राहक
हालांकि मकर संक्रांति को अब गिनती के दिन बचे हैं. पर अभी से शहर में पतंगबाजी चरम पर पहुंच रही है. लेकिन इस बीच चायनीज मांझे से हादसे भी शुरू हो गए हैं. उधर शहर के पतंग बाजार में विक्रेता चायनीज मांझा बेचे जाने से इनकार कर रहे हैं. जबकि अब भी पतंगबाज खुलेआम चायनीज मांझे का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस बार कार्रवाई के डर से नायलॉन मांझे की बजाय विक्रेताओं द्वारा सऊदी मांझा ज्यादा बेचा जा रहा है. वहीं बरेली के मांझे की पुरानी डिमांड भी धीरे -धीरे लौटती नजर आ रही है. पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट.
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सऊदी मांझा में क्या है खास?
पतंगबाजार के विक्रेताओं का कहना है कि इस बार जो ग्राहक उनसे चाइनीज मांझा मांग रहे हैं, उन्हें वो सऊदी और बरेली मांझा दे रहे हैं. वैसे तो बरेली मांझा चाइनीज मांझा का इस्तेमाल बढ़ने से पहले काफी फेमस हुआ करता था. लेकिन सऊदी मांझा इसी साल बाजार में आया है. आते ही ये धूम मचा रहा है. एक विक्रेता के अनुसार ये मांझा बरेली के मांझे की तरह है लेकिन ये 9 और 12 तार का होने से थोड़ा मजबूत और स्ट्रेचेबल है.
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महंगा हुआ मांझा
शहर के पतंग बाजार में मांझे के दाम बढ़े नजर आ रहे हैं. इस बार 6 तार का मांझा 100 रुपए, 9 तार का मांझा 150 रुपए और 12 तार का मांझा 300 रुपए के रेट से बेचा जा रहा है. चकरोल के दाम अलग से वसूले जा रहे है. विक्रेताओं के अनुसार एक पतंगबाज 8-9 रील का मांझा, चकरोल और महंगी पतंग खरीदकर जाता है. ऐसे में एक ही समय 1000-1500 रुपए की बिक्री हो जाती है. पिछले साल के मुकाबले में इस साल बिक्री अच्छी होने की जानकारी भी विक्रेताओं ने दी है.
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डिजाइनर पतंगें
आजकल डिजाइनर वस्तुओं की डिमांड ज्यादा रहती है. इसी को देखते हुए शहर के कई विक्रेताओं ने डिजाइनर पतंगें बेचने के लिए रखी हैं. उल्लेखनीय है कि डिजाइनर पतंगें शहर में नहीं बनाई जातीं. इसके लिए दिल्ली की पतंगों की खरीदी किए जाने की जानकारी विक्रेताओं ने ‘एमई’ को दी है. स्थानीय विक्रेताओं ने बताया कि इस बार बाजार में 1 रुपए से 200 रुपए तक की पतंगें बिक्री के लिए मौजूद है. इसी के साथ शो के लिए 500 से 1000 रुपए तक की भी पतंगे उपलब्ध है. दिल्ली के अलावा इस बार यूपी के रामपुर, मध्यप्रदेश के इंदौर और राजस्थान के जयपुर से भी पतंगे लाई गई है.
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चाइनीज मांझे की मांग बरकरार
शहर के पतंग बाजार के विक्रेताओं ने एमई को बताया कि चाइनीज मांझा बार-बार प्रयोग में आता है . ये सस्ता और पक्का होने के कारण इसकी डिमांड ज्यादा रहती है. इस डोर पर कांच और मेटल का लेप किया जाता है कि यह सूती मांझे से सस्ता पड़ता है. डोर आसानी से न तो टूटती है और न ही कटती है, यही कारण है कि एक बार खरीदने के बाद इसे लंबे समय तक काम में लिया जा सकता है. दुकानदारों की मानें तो चाइनीज मांझे की मांग अब भी कम नहीं हुई है. ये बात और है कि कार्रवाई के डर से विक्रेता ये मांझा बेच नहीं रहे हैं. लेकिन उनका कहना है कि अब भी दिन में 30 में से 25 ग्राहक चाइनीज मांझा की ही मांग करते हैं.
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बैन में भी बिक्री
देश के कई राज्यों में तो चाइनीज मांझे पर पूरी तरह से बैन है. इनमें पतंगबाजी के लिए मशहूर राज्य गुजरात समेत महाराष्ट्र, चंढीगढ़, दिल्ली शामिल हैं. लेकिन बैन के बावजूद शहर में अब भी पतंगबाजी के दौरान चाइनीज मांझे से घायल होने की घटनाएं प्रकाश में आ रही है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि आखिर पाबंदी के बावजूद ये मांझा पतंगबाजों तक पहुंच कैसे रहा है?
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