हमारे पूर्वज गधे थे...!

हमारे पूर्वज गधे थे...!
विख्यात वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है. विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना. डार्विन को इसीलिए मानव इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. लेकिन आधुनिक युग के ‘पढ़त मुर्खों’ की बयानबाजी सुनने के बाद लगता है कि डार्विन जैसे विख्यात वैज्ञानिकों के विकासवाद का सिद्धांत पूरी तरह गलत था. डार्विन के अनुसार आज के हम सभी मनुष्य बंदरों का विकसित रूप है. समय अनुसार हुए परिवर्तन के साथ हम में ये बदलाव आया. लेकिन पूर्व आईपीएस अधिकारी तथा पीएचड़ी धारी वर्तमान केंद्रीय मंत्री सतपाल सिंह जी की माने तो डार्विन का ये सिद्धांत न सिर्फ गलत है बल्कि वैज्ञानिकों के नाम पर जो विज्ञान की बातें अबतक हमें पाठ्यक्रमों में बतलाई जाती रही है, वो साफ झूठ थी.
सतपाल सिंह जी अकेले ऐसे ‘पढ़त मुर्ख’ होते तो ऐसा शीर्षक लिखने की जरूरत नहीं होती. लेकिन क्या करें हर दिन कोई न कोई केंद्रीय मंत्री, विधायक, सांसद, न्यायाधीश अपनी ‘अकल बांटने’ निकल पड़ता है. कल ही की बात है, एक न्यायाधीश ने कहा था कि ‘मोर के आंसू पीकर मोरनी गर्भधारण करती है’. इन आधुनिक युग के इन ‘पढ़त मुर्खों’ की बयानबाजी सुनने के बाद मैं पर्सनली तो इस विचार का हो ही गया हूं कि हमारे पूर्वज बंदर नहीं, गधे थे.
- फहीम खान

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