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मासूमो पर कुकर्म करने वालो से रहम कैसा?

मासूमो पर कुकर्म करने वालो से रहम कैसा? हाल के दिनों में मासूमों पर अत्याचार करने की वारदातों में कुछ ज्यादा ही इजाफा हुआ दिख रहा है. करीबी रिश्ते पर विश्वास करने वाले मासूमों पर होने वाले यह अत्याचार देखने के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसे दरिंदों के लिए कड़ी सजा की वकालत पूरा समाज एक साथ खड़ा होकर क्यों नहीं करता? महिला यौन उत्पीड़न, अत्याचार को लेकर राजनीतिक बयानबाजी होती हुई हमेशा दिखाई देती है. अपने फायदे और नुकसान को देखते हुए बलात्कार की घटना से जुड़ी पीड़िता और जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी पर राजनेता और उनके राजनीतिक दल प्रतिक्रियाएं देते दिखते है. लेकिन विडंबना यह है कि जिनके घरों में बेटिया होती है वे भी ऐसे मामलों में खुलकर बोलते नजर नहीं आते है. केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने बाल अपराधियों की उम्र को लेकर नया विवाद छेड़ दिया है. कुछ लोग उनकी राय से सहमत भी है और वकालत कर रहे है कि जघन्य अपराधों में शामिल रहने वाले बाल आरोपियों के साथ मानविय व्यवहार न करते हुए उन्हे कड़ी सजा का प्रावधान हो सके. लेकिन खुद मेनका गांधी और उनके इस मुद्दे पर समर्थकों ने कभी मासूम बच्चे और

गांधी का नहीं अब आंधी का देश बन गया है ये

कब तक मसीहा के पीछे भागते रहेंगे हम? गांधी का नहीं अब आंधी का देश बन गया है ये -फहीम खान. कल ही लोकसभा चुनावों के नतीजे आए है. 1984 के बाद पहली मर्तबा मतदाताओं ने देश को स्थिर सरकार दी है, उसके लिए सभी बधाई के पात्र है. यह नतीजे हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए चौकाने वाले भी साबित हुए हो. लेकिन इन चुनावों के पहले जो कुछ हुआ और चुनावी प्रक्रिया के दौरान जो कुछ किया जाता रहा वह यकीनन भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मसार करने वाला ही साबित हुआ है. इस चुनाव में करोड़ों का काला धन पानी की तरह बहाया गया है. ऐसे में नई सरकार काला धन पर चुनाव पूर्व करती आई अपने दावों पर कितना सही उतर पाती है यह देखना होगा. इस चुनाव के दौरान और अब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की जीत पर करोड़ों लोग खास कर युवा मतदाता बेहद जोश में नजर आ रहे है. यह जोश की वजह बहुत साफ नहीं है लेकिन माना जाता है कि देश के मतदाताओं ने देश की सारी समस्याओं के लिए नरेंद्र मोदी को ही रामबाण उपाय मान लिया है. राजनाथ सिंह के शब्दों में कहे तो हर मर्ज की दवा बन गए है नरेंद्र मोदी! इस चुनाव के नतीजे मुझ जैसे व्यक्ति को यह
1.32 लाख वोटों से दूसरी मर्तबा जीते पंजाबराव देशमुख प्रमुख प्रतिद्वंदी सहित सभी पांचों उम्मीदवारों की हुई थी जमानत जब्त फहीम खान। अमरावती. वर्ष 1951 में हुए लोकसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज करने के बाद अगले वर्ष 1957 के चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी पंजाबराव श्यामराव देशमुख ने 1 लाख 32 हजार 950 वोटों से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को परास्त किया. इस चुनाव में उन्हे 62.26 फीसदी यानी 1 लाख 59 हजार 874 वोट हासिल हुए थे. उल्लेखनीय बात यह रही कि इस चुनाव दौरान उनके साथ चुनावी मैदान में उतरे अन्य पांचों प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई थी. दूसरे स्थान पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी म्हशानकर शंकर हरी को 26 हजार 924 वोट हासिल हुए थे. गडघे अन्ना परसराम ने 21 हजार 481, अदसर जनार्दन एकनाथ ने 19 हजार 936, सिंघई सुदर्शन गुलाबसिंग ने 18 हजार 241, पोतदार सिताराम त्र्यंबक ने 10 हजार 323 वोट हासिल किए थे. इस चुनाव में 2 लाख 56 हजार 779 वोट वैध करार दिए गए थे. 62.97 फीसदी वोट चुनाव दौरान पड़े थे. लोकसभा चुनाव 1957 अमरावती क्षेत्र प्रत्याशी पार्टी प्राप्त वोट (प्रतिशत) देशमुख पंजाबराव
1980 में अमरावती को मिली प्रथम महिला सांसद फहीम खान। अमरावती. अमरावती लोकसभा सीट से वर्ष 1980 के चुनाव तक अमरावती क्षेत्र से किसी भी महिला को सांसद बनने का मौका नहीं मिला था. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने उषाताई प्रकाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतारा. आरपीआई ने भी महिला बनाम महिला का मुकाबला करने की मंशा से कमल रामकृष्ण गवई को टिकट दिया था. हालांकि 3 लाख 57 हजार 26 वैध वोटों में से 2 लाख 55 हजार 916 वोट यानी 71.68 फीसदी वोटों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी उषा चौधरी ने जीत दर्ज की. उनकी निकटतम प्रत्याशी कमल गवई को 86 हजार 286 (24.17) वोट हासिल हुए. इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि इन दो महिला प्रत्याशियों के अलावा जो अन्य आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे सभी की जमानत जब्त हो गई थी. उस समय अमरावती क्षेत्र में यह चर्चा आम हो गई थी कि दो महिलाओं ने मिलकर आठ पुरूष प्रत्याशियों की जमानत जब्त करा दी. इस चुनाव में 56.56 फीसदी मतदान हुआ था.

अमरावती लोकसभा चुनाव

1980 में अमरावती को मिली प्रथम महिला सांसद फहीम खान। अमरावती. अमरावती लोकसभा सीट से वर्ष 1980 के चुनाव तक अमरावती क्षेत्र से किसी भी महिला को सांसद बनने का मौका नहीं मिला था. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने उषाताई प्रकाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतारा. आरपीआई ने भी महिला बनाम महिला का मुकाबला करने की मंशा से कमल रामकृष्ण गवई को टिकट दिया था. हालांकि 3 लाख 57 हजार 26 वैध वोटों में से 2 लाख 55 हजार 916 वोट यानी 71.68 फीसदी वोटों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी उषा चौधरी ने जीत दर्ज की. उनकी निकटतम प्रत्याशी कमल गवई को 86 हजार 286 (24.17) वोट हासिल हुए. इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि इन दो महिला प्रत्याशियों के अलावा जो अन्य आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे सभी की जमानत जब्त हो गई थी. उस समय अमरावती क्षेत्र में यह चर्चा आम हो गई थी कि दो महिलाओं ने मिलकर आठ पुरूष प्रत्याशियों की जमानत जब्त करा दी. इस चुनाव में 56.56 फीसदी मतदान हुआ था.

लाख टके की बात

बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी! लाख टके की बात- फहीम खान अमरावती के संबंध में यह कहा जाता है कि यह बेहद शांति बरतने वालों का शहर है. यहां के लोगों की सहन करने की मर्यादाएं बहुत है. यहीं बात कहते है कि अमरावती के वकीलों पर भी लागू होती रही है. यहां के वकील जजों के लिए हमेशा से ही इस लिए चहेते बने रहे क्योंकि वे जजों का सम्मान करना बखूबी जानते थे. लेकिन जो बात गुरूवार को जिला न्यायालय में हुई और फिर हंगामा मचा. इसके बाद से अमरावती का यह न्यायालयीन विवाद बहुत दूर तक जाने की संभावना दिखने लगी है. असल में गुरूवार को उस अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायाधीश सुरभि साहू और अधि. विनोद गजभिए के बीच जो कुछ हुआ वह सही और गलत के तराजू में कोई माई का लाल तोल नहीं सकता है. जज ने जो किया वह न्यायसंगत था या नहीं? वकील ने ऐसा क्या कह दिया कि जज इतना तिलतिला गई? यह सवाल आम आदमी के जेहन में आना स्वाभाविक भी है. लेकिन सवाल यह उठने लगा है कि क्या उस न्यायालय की चार दीवारी के भीतर जो कुछ हुआ था वह इतना गंभीर अपराध था कि उसे उसी चार दीवारी के भीतर सुलझाया नहीं जा सकता था? क्योंकि जज के आदेश और वकीलों क

महिलाओं की पृथक सूची तो बन ही सकती थी

महिलाओं की पृथक सूची तो बन ही सकती थी संत गाडगेबाबा और राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की कर्म स्थली होने से अमरावती में सामाजिक आंदोलनों की अपेक्षाएं अधिक होना स्वाभाविक है. रविवार को इस महानगर के वड़ाली इलाके की महिलाओं ने वाकई में नया इतिहास लिखा है. पिछले चार -पांच माह से चला आ रहे आंदोलन के कारण आखिरकार महिलाओं की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा. रविवार को शराब दुकान हटाने के लिए मतदान कराया गया. शराब की दुकान बचाने वालों की ओर से हर तरह के हथकंड़े अपनाए गए. 50 फीसदी वोटिंग न हो सके इसके लिए भी हर तरीके से बंदोबस्त कराया गया. लेकिन रविवार को जिस उत्साह से महिलाएं मतदान केंद्रों पर पहुंची है उसे देखते हुए यह कहना होगा कि अब महानगर के अन्य शराब दुकानदारों ने भी इससे सबक ले लेना चाहिए. इस पुरी प्रक्रिया में जितनी सराहना महिलाओं की करनी होगी उतनी ही आलोचना प्रशासन की करनी ही पड़ेगी. क्योंकि जिस चुनाव की घोषणा इतने दिन पूर्व हो चुकी है उसके सिर्फ 4,500 महिला वोटरों की पृथक सूची बनाने की किसी अधिकारी को क्यों नहीं सुझी? शराब दुकान बंद कराने का अधिकार महिलाओं को हमारे संविधान के तहत दिया गया ह
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