हम बड़े तुर्रम खान बनते थे, कुदरत ने हमारी औकात बता दी है...
ये बात लाख टका सही है कि हम इंसानो को अपनी औकात भूलने की बीमारी है लेकिन कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक दवा होती है। कोरोना वायरस का ख़ौफ़ पहला ख़ौफ़ नही है ,इससे पहले भी कुदरत ने हमें ऐसे ही कई मर्तबा हमारी औकात बताई है। ये बात अलग है कि हम इंसानों का घमंड कम नहीं हो रहा। हमने तो स्वयं को इस सृष्टि का सर्व शक्तिमान मान लिया है। ऐसा मानने के चलते इस कुदरत के अन्य जीवों के प्रति हम उदार नहीं रहे। हमारे रहने की , अधिवास की जगह हमें कम लगने लगी तो हमने अपने पैर पसारना शुरू कर दिया। हमारे लिये तो हमारा वजूद ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। फिर क्या था हमने जंगल काटे ,विशालकाय पेड़ो को धराशायी किया। केवल इसलिए कि हम ये मान बैठे है कि हमसे सर्व शक्तिमान यहां कोई नहीं है। जिन घने जंगलों में वन्यजीव रहते थे उनके अधिवास की जगह पर हमने अवैध रूप से कब्जा कर लिया, बावजूद इसके हमें इसमे कुछ भी गलत नहीं लगता। अरे भाई लगे भी क्यों? आखिर "फिटेस्ट विल सर्वाइव" का नियम भी तो हमने ही बना रखा है। जब हमने जंगल निगल लिए तो हमारी नजर ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर पड़ी। भला इस सृष्टि में हम इंसानो से ऊंचा कोई हो सकता है? ये तो गुस्ताखी है साहब। फिर हमने ऊंचे ऊंचे पहाड़ों को नीचा दिखाना शुरू कर दिया। पहाड़ो पर भी कॉन्क्रीट के जंगल खड़े कर दिए। समंदर, नदी और तालाबों को हम इंसानों ने जब मस्ती में उछलते कूदते देखा तो उनकी ये खुशी भी हमे ना गवार गुजरी। फिर तो सर्वश्रेष्ठ हम इंसानों ने समंदर को प्रदूषित कर दिया। नदी को नाले में तब्दील कर दिया और तालाबो का अस्तित्व ही सिर्फ बोटिंग करने तक सीमित कर डाला। ऐसा करके हम इंसानों को बड़ी खुशी मिलती रही,क्योंकि इससे हमें ऐसा लगने लगा था कि हम इंसान इस सृष्टि में जो चाहे कर सकते है। हमारी मर्जी से ही हर चीज होगी। हमने कुदरत की बारीकियों को देख कर जो विज्ञान सीखा था उसी विज्ञान को हमने कुदरत के के खिलाफ हथियार बना लिया है। आज हम इसी घमंड में तो जी रहे थे। लेकिन कुदरत ने फिर पांसा पलट दिया है। उसकी एक चाल ने फिर हम घमंडी इंसानो को हमारी औकात बता दी है। उम्मीद है, कोरोना की इस त्रासदी से छुटकारा पाने के बाद हम इंसान कुदरत को कम आंकने और खुद को बड़ा तुर्रम खान समझने से बाज आएंगे...नहीं तो एक दिन कुदरत खुद को बड़ा तुर्रम खान साबित कर देगी तो इंसानों को वजूद तलाशना भी मुश्किल हो जाएगा।
- फाही

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