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Showing posts from 2025

लाख टके की बात : ये सफर नहीं आसान, गड्ढों का दरिया है और उछलते जाना है...

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- फहीम खान नागपुर... हमारी उपराजधानी, संतरे के स्वाद जैसी मीठी पहचान वाला शहर… पर इन दिनों सड़कों की हालत कड़वे सच जैसी हो चली है. हर तरफ गड्ढे ही गड्ढे. कोई सड़क पूछिए, कोई इलाका चुनिए, जवाब में दर्द मिलेगा. और ये दर्द अब केवल वाहन के टायरों का नहीं, सीधे आम नागपुरवासी के शरीर और मन का है. हर सुबह जब कोई बाइक पर ऑफिस के लिए निकलता है या बच्चा स्कूल की बस में बैठता है, तो उनकी रीढ़, उनकी गर्दन, उनके कंधे इन झटकों को झेलने के लिए मजबूर होते हैं. डॉक्टर कहते हैं, रीढ़ की हड्डी शरीर का आधार है, और ये झटके उसी आधार को तोड़ने का काम कर रहे हैं. हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ जगताप बताते हैं कि सड़क पर हर उछाल, हर गड्ढा रीढ़ पर दबाव बनाता है. नतीजा? कमर दर्द, गर्दन की अकड़न, कलाई का सूजना, और स्लीप डिस्क जैसी तकलीफें. बात यहीं खत्म नहीं होती. जब आंखें सड़क के हर गड्ढे को तलाशने में जुट जाएं, तो सिर दर्द और आंखों की थकान लाज़िमी हो जाती है. और जब शरीर थकने लगे, तो मन भी थक जाता है. जनरल फिजिशियन डॉ. पिनाक दंदे कहते हैं, हर रोज गड्ढों से जूझता ड्राइवर सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक थकान भी...

लाख टके की बात : जहां फ्लाईओवर हैं, वहां समस्या क्यों है?

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– फहीम खान एक समय ऐसा था जब शहर में सिर्फ पांचपावली फ्लाईओवर था, तब लोग उसे देखकर हैरत में पड़ जाते थे. आज हालात ऐसे हैं कि नागपुर ‘फ्लाईओवरों का शहर’ बनता जा रहा है, लेकिन इन फ्लाईओवर की डिजाइन ऐसी उलझी हुई है कि जितनी राहत मिलनी चाहिए थी, उससे ज्यादा परेशानी और सवाल खड़े हो गए हैं. हैरानी इस बात की नहीं कि शहर में तेजी से एक के बाद एक फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं, बल्कि इस बात की है कि हर फ्लाईओवर की शुरुआत में ही कोई न कोई गड़बड़ी सामने आती है. कभी डिजाइन बदलना पड़ता है, कभी आर्म की दिशा, कभी स्पैन गिर जाता है, तो कहीं फ्लाईओवर धंस जाता है. सदर का रेसिडेंसी रोड फ्लाईओवर 15 साल पहले बन जाना चाहिए था. लेकिन पहले होटल के पास लैंडिंग रखी, फिर केपी ग्राउंड की ओर मोड़ा गया और आज करोड़ों की लागत से दोबारा आर्म बनाई जा रही है. मतलब शुरुआत की प्लानिंग इतनी कच्ची थी कि अब इसे सुधारने में दोगुना खर्च आ रहा है. क्या जनता के पैसों से ऐसे प्रयोग होते रहेंगे? अमरावती रोड के फ्लाईओवर की लंबाई पहले 2 किमी थी, बाद में इसे 500 मीटर बढ़ाया गया. बूटीबोरी फ्लाईओवर के धंसने की घटना को एक भारी ट्रक पर थोपना ...

लाख टके की बात : 102 साल के विश्वविद्यालय को आखिर क्यों नहीं मिल रहा कप्तान?

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- फहीम खान राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय की पहचान केवल एक शिक्षण संस्था के रूप में नहीं है, बल्कि यह मध्य भारत की शैक्षणिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना का केंद्र भी है. सन 1923 में स्थापित यह विश्वविद्यालय आज 100 वर्ष से अधिक का हो चुका है. लेकिन ऐसी प्रतिष्ठित संस्था में एक वर्ष से स्थायी कुलपति की गैरमौजूदगी शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गहरी चिंता का विषय है. दिवंगत कुलपति डॉ. सुभाष चौधरी के निलंबन और बाद में असामयिक निधन के बाद से यह पद रिक्त पड़ा है. कभी डॉ. प्रशांत बोकारे को अस्थायी रूप से जिम्मेदारी दी गई, फिर यह कार्यभार प्रशासनिक अधिकारी माधवी खोड़े को सौंपा गया. लेकिन स्थायित्व नाम की चीज अब तक नदारद है. अब सोचिए, 500 से ज्यादा संबद्ध महाविद्यालय, 4 लाख से अधिक छात्र, दर्जनों विभाग और रिसर्च प्रोजेक्ट, और इन सबका कोई स्थायी कप्तान ही नहीं! यह कोई सामान्य लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी उदासीनता है. जब देश शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की बात कर रहा है, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की जा रही है, विश्वविद्यालयों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना...

लाख टके की बात : पुराने वीडियो वायरल करने की आखिर जरूरत ही क्या थी?

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– फहीम खान पिछले हफ्ते नागपुर में हुई मूसलधार बारिश ने एक बार फिर से ‘स्मार्ट सिटी’ के दावों को पानी में बहा दिया. बारिश से जलजमाव हुआ, सड़कों पर गाड़ियां डूबी नजर आईं और कुछ इलाकों में तो हालात इतने बिगड़े कि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें नाव लेकर लोगों को उनके घरों से निकालने पहुंचीं. सवाल यह है कि हर साल यही होता है, तो फिर हर बार की तैयारी अधूरी क्यों होती है? अगर 200 मिमी बारिश में ही शहर बिखर जाए, तो स्मार्ट कहे जाने का क्या औचित्य है? हर साल जिन इलाकों में पानी भरता है, इस बार भी वही हुआ, तो क्या प्रशासन ने कुछ भी नहीं सीखा? टैक्स वसूलने में मनपा कभी पीछे नहीं रहती, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा की जिम्मेदारी से हाथ पीछे खींच लेती है. लेकिन इस बार प्रशासन की लापरवाही के साथ एक और चिंता की बात सामने आई, दो साल पुराने वीडियो का वायरल खेल. सोशल मीडिया पर शहर के कुछ तथाकथित 'इंफ्लुएंसर्स' ने 2023 की बाढ़ के वीडियो को 2025 की बारिश बताकर फैलाया. ये वीडियो न सिर्फ भ्रामक थे, बल्कि शहर की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले भी थे. क्या ये सब जानबूझकर हुआ? सिर्फ कुछ ‘लाइक’ और...

लाख टके की बात : ऑपरेशन थंडर: अब दिखावे से आगे बढ़ने की जरूरत

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- फहीम खान नागपुर सिटी पुलिस का "ऑपरेशन थंडर 2025" एक सराहनीय और दूरदर्शी पहल रही. पूरे सप्ताह चले इस नशा विरोधी अभियान में जनप्रतिनिधियों से लेकर आम नागरिक, छात्र, एनजीओ, शिक्षक, पुलिसकर्मी और विशेषज्ञों तक सभी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. नुक्कड़ नाटक, रैलियां, पोस्टर प्रतियोगिताएं, रील्स, जागरूकता सत्रों से लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन तक, हर पहलू पर काम हुआ. पुलिस आयुक्त डॉ. रवींद्र सिंगल की अगुआई में शहर ने एकजुट होकर संदेश दिया कि अब नशे के खिलाफ आवाज उठानी होगी. लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ जागरूकता से नशे का कारोबार रुकेगा? शहर के कॉलेज, स्कूल, गलियों और ठिकानों पर नशे की खुलेआम बिक्री हो रही है. अफसोस की बात है कि पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी अधिकतर मामलों में सिर्फ दिखावटी कार्रवाई होती है. ड्रग माफिया पुलिस की लापरवाही और कुछ लोगों की मिलीभगत से निडर होकर युवाओं की नसों में खुलेआम जहर घोल रहे हैं. "ऑपरेशन थंडर" तब सफल माना जाएगा जब इस शहर में स्कूल- कॉलेज के युवाओं को नशे की गिरफ्त में करने वाले और बेखौफ ड्रग्स बेचने वालों को जड़ से उखाड़ फेंका जाएगा. म...

लाख टके की बात : दावे शतप्रतिशत, असर शून्य क्यों?

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– फहीम खान नागपुर में मानसून की पहली झमाझम बारिश बुधवार की रात को हो चुकी है और हमेशा की तरह इस बार भी मनपा प्रशासन के दावों की असलियत खुलकर सामने आ गई है. पहली ही बारिश ने मनपा की सारी तैयारियों की पोल खोल दी है. हर साल की तरह इस बार भी मनपा प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि मानसून पूर्व की सारी तैयारियां पूरी हैं. नदियों की सफाई को लेकर तो बंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में बाकायदा हलफनामा तक दाखिल कर दिया गया. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है, और इसका सबसे बड़ा प्रमाण खुद बुधवार की बारिश बन गई. लोकमत समूह के फोटो जर्नलिस्ट द्वारा खींची गई तस्वीरें यह साबित करने के लिए काफी हैं कि नाग नदी, पीली नदी, पोहरा नदी जैसी जलवाहिनियां मनपा के दावों के बावजूद अब भी गंदगी, मलबे और बदबू से भरी पड़ी हैं. यदि सफाई हुई होती, तो बारिश का पानी कहीं पर भी रुकता नहीं, बहता रहता. इधर शहर की सड़कों का भी बुरा हाल है. मानसून पूर्व की हड़बड़ी में कई जगहों पर सीमेंट सड़कें बिछाई जा रही हैं, मानो समय कम पड़ गया हो. नतीजा, हर गली, हर चौराहा खुदा पड़ा है. न यातायात का मार्ग बचा, न पैदल चलने की सुविधा. खुद...

कांचन येले – जैसा यार, वैसी ही अनोखी कहानी

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- फहीम खान कांचन येले… नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वजह साफ़ है — ये शख्सियत ही कुछ अलग है। पिताजी फौज से रिटायर्ड, लेकिन कांचन हमेशा से मनमौजी मिज़ाज के रहे। हंसमुख इतना कि कॉलेज में हर किसी के दिल में जगह बना ली थी। आईटीआई से इलेक्ट्रिशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब साहब नागभिड़ के कॉलेज में मराठी साहित्य पढ़ने पहुंचे, तो जेब में हमेशा एक छोटा एफएम रेडियो साथ होता। गाने सुनना और गाना — दोनों ही शौक के साथ निभाते थे, और खुदा ने गला भी कमाल का दिया था। लेकिन असली पहचान तो उस आदत से बनी, जिससे सब परेशान भी रहते और हैरान भी — हर इलेक्ट्रॉनिक चीज़ को खोलकर उसका 'पोस्टमार्टम' करना। यही आदत बाद में हुनर बनी और साहब गुवाहाटी, गुजरात, मुंबई होते हुए नागपुर के ले मेरेडियन होटल तक पहुंच गए। बीच में हल्दीराम और सयाजी जैसे नामी होटलों का भी हिस्सा बने। आज मेहनत और हुनर के दम पर जिंदगी को सजाने-संवारने में लगे हैं। कांचन की सबसे बड़ी खासियत यही है कि खुद चाहे कितने ही दर्द क्यों न झेल रहे हों, दूसरों को हमेशा हंसाते रहे। कॉलेज के दिनों में जब क्लास बंक करते, तो सबको पता...

एक तोता, एक बच्चा और नक्सलवाद की परछाई – भामरागढ़ की वो तस्वीरें जो आज भी धड़कनों में कैद हैं

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✍️ फहीम खान वर्ष 2001 से 2012 तक गढ़चिरोली में बिताया गया मेरा पत्रकारिता जीवन सिर्फ खबरों की तलाश नहीं, बल्कि इंसानियत के नजदीक पहुंचने का सफर था। चंद्रपुर में ‘महाविदर्भ’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे अखबारों से होते हुए जब मुझे ‘नवभारत’ के जरिए गढ़चिरोली जाने का मौका मिला, तो मैंने उसे हाथ से जाने नहीं दिया। हालांकि नवभारत में मेरा प्रवास अल्पकालीन रहा, पर 'लोकमत समाचार' के जरिए इस ज़िले से जुड़ाव गहराता गया। गढ़चिरोली में जब मैं भामरागढ़ पहुंचा, तब नक्सलवाद अपने चरम पर था। पुलिस थाना और एसडीपीओ का बंगला शाम होते ही सूना हो जाता था। इन्हीं हालातों में एक दिन मैं उपविभागीय अधिकारी विजयकांत सागर के घर पहुंचा। वहीं पहली बार उनकी गोद में पल रहे मासूम रणवीर को देखा—पिंजरे के सामने बैठा हुआ, पिंजरे में बंद एक तोते को निहारता हुआ। उस क्षण ने मुझे झकझोर दिया। जैसे रणवीर और तोता दोनों ही किसी अदृश्य कैद में हों। नक्सल दहशत के कारण न स्कूल, न खेल- उसका बचपन जैसे छीन लिया गया हो। मेरे कैमरे ने वो दृश्य थाम लिया। 'झरोखा' कॉलम में जब वह फोटो छपी, तो विजयकांत सागर ने उसे संजो लिया। ...

मकाऊची प्रेम-गल्ली: त्रावेसा दा पैशाओ

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- फहीम खान, सीनियर जर्नलिस्ट, नागपुर परक्या देशात फिरताना काही क्षण असे येतात जे तुमच्या अंतःकरणात खोलवर घर करतात. मकाऊच्या रस्त्यांवर फिरताना एक असाच क्षण माझ्याही आयुष्यात आला — त्रावेसा दा पैशाओ या एका गूढ, देखण्या आणि प्रेमाने भारलेल्या गल्लीत. त्या दिवशी मी Ruins of St. Paul's या ऐतिहासिक स्थळावरून खाली उतरत होतो. समोर दिसणारी गर्दी, कॅमेऱ्यांचे फ्लॅश, आणि पर्यटकांची वर्दळ थोडी मागे टाकून, उजव्या बाजूला दिसलेल्या एका लहानशा गल्लीकडे माझं लक्ष गेलं. रंगीत भिंती, दगडी पायऱ्या, आणि फुलांनी सजलेल्या खिडक्या — ही जागा काहीतरी खास सांगते आहे असं वाटलं. गल्लीत प्रवेश करताच त्या ठिकाणाचं नाव वाचलं — Travessa da Paixão — अर्थात... प्रेमाची गल्ली! त्या गल्लीत शिरल्यावर जाणवलं की इथे वेळेचं भान हरवतं. जणू काही काळाचं चक्र थोडंसं मागे फिरलंय. सगळं काही शांत, संथ आणि सौंदर्यपूर्ण. प्रत्येक भिंत, दरवाजा, खिडकी — जणू एखादं जुने प्रेमकाव्य सांगत होती आणि त्या वातावरणात मी क्षणभरातच हरवून गेलो. त्या गल्लीत एक छोटं, खास सिनेमा थिएटर आहे. आत गेल्यावर लक्षात आलं की इथे पारंपरिक व्यावसाय...

स्वप्ननगरी मकाऊ

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- मनोरंजन, भव्यता आणि शिस्तीचा संगम - फहीम खान, वरीष्ठ पत्रकार, नागपूर अलीकडेच झालेला माझा मकाऊ दौरा हा एक अविस्मरणीय अनुभव ठरला. हे शहर म्हणजे एखाद्या स्वप्नाचे सजीव रूप वाटते – जिथे आधुनिकता, मनोरंजन आणि शिस्त यांचा विलक्षण संगम अनुभवायला मिळतो. मकाऊच्या चकचकीत रस्त्यांनी, शिस्तबद्ध वाहतूक व्यवस्था, सुरक्षित वातावरण आणि भव्य इमारतींनी मला अंतर्मनापर्यंत भारावून टाकले. प्रत्येक वळणावर असं वाटत होतं, जसं मी एखाद्या काल्पनिक जगात फिरतो आहे... मकाऊचं सौंदर्य आणि आधुनिकता पाहून मनात असं वाटलं – "खरच! आपल्या देशातही असं एखादं शहर असतं तर!" आंतरराष्ट्रीय नाणेनिधी (आयएमएफ) च्या अहवालानुसार, 2025 मध्ये मकाऊचा प्रतिव्यक्ती जीडीपी अंदाजे 140.25 हजार डॉलर्स इतका अपेक्षित आहे, ज्यामुळे तो जगात तिसऱ्या क्रमांकावर असेल. दक्षिण चीनमध्ये वसलेला हा विशेष प्रशासकीय विभाग आपल्या संपन्नता, भव्यता आणि शिस्तबद्धतेमुळे जगभरातील पर्यटकांना आकर्षित करतो. हाँगकाँगपासून अवघ्या 60 किमी अंतरावर असलेले मकाऊ आपल्या भव्य इमारती, कॅसिनो, ऐतिहासिक वारसा आणि शिस्तबद्ध ट्रॅफिकमुळे एक अनोखे पर्यटनस्थळ...

ज्वेल चांगी एयरपोर्ट – एक हवाईअड्डा या स्वर्ग का प्रवेशद्वार?

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- फहीम खान fahim234162@gmail.com 2024 में सिंगापुर की मेरी यात्रा का सबसे यादगार हिस्सा कुछ और नहीं, बल्कि वहां का ज्वेल चांगी एयरपोर्ट रहा। आपने अक्सर सुना होगा कि एयरपोर्ट केवल उड़ान पकड़ने की जगह होता है – भीड़, हड़बड़ी और लंबी कतारें। लेकिन सिंगापुर ने इस परिभाषा को पूरी तरह बदल दिया है। जैसे ही मेरी फ्लाइट चांगी एयरपोर्ट पर उतरी और मैं टर्मिनल 1 के आगमन हॉल से बाहर निकला, सामने जो नज़ारा था, उसने मुझे चौंका दिया – एक कांच और स्टील से बना भव्य गुंबद, जिसके अंदर हरियाली से भरा एक स्वप्नलोक जैसा दृश्य। ज्वेल में कदम रखते ही ऐसा लगा जैसे किसी दूसरी दुनिया में प्रवेश कर गया हूं। आसमान छूती हरियाली, बीचोंबीच गिरता हुआ विशाल झरना – "एचएसबीसी रेन वोरटेक्स", जो दुनिया का सबसे ऊंचा इंडोर वॉटरफॉल है – और उसके चारों ओर बना फॉरेस्ट वैली, जहां पेड़ों और पौधों की खुशबू से मन ताजगी से भर गया। मैंने सबसे पहले वहां का इंटरेक्टिव नक्शा उठाया और घूमना शुरू किया। ऊपर की मंजिलों पर पहुंचा, तो वहां तरह-तरह की दुकानों की कतारें थीं – स्थानीय ब्रांड से लेकर इंटरनेशनल डिज़ाइनर स्टोर्स तक।...

मकाऊ की प्रेम-गली – ‘त्रावेसा दा पैशाओ’

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मकाऊ की सड़कों पर चलते हुए जब मैं रूइंस ऑफ सेंट पॉल्स की सीढ़ियां उतरने लगा, तो दाहिनी ओर एक छोटी-सी गली ने मेरा ध्यान खींचा. हल्के गुलाबी, पीले और नीले रंगों से रंगे पुराने पुर्तगाली शैली के मकान, फूलों से सजे गमले, और पत्थरों से बनी सीढ़ियां — यह कोई आम गली नहीं लग रही थी. नाम था त्रावेसा दा पैशाओ (Travessa da Paixão) यानी प्रेम की गली. जैसे ही मैं इस गली में आगे बढ़ा, लगा जैसे समय कुछ पल के लिए थम गया हो. वहां एक अलग ही शांति और सौंदर्य था, जो हर मोड़ पर एक नई कहानी कहता प्रतीत होता था. हर मकान की दीवारें जैसे किसी पुराने प्रेम-पत्र की तरह कुछ कहना चाहती थीं. यह जगह जितनी सुंदर थी, उतनी ही रहस्यमयी भी. गली में चलते-चलते एक छोटा-सा सिनेमा दिखा. उत्सुकतावश मैं अंदर चला गया. वहां प्रेम पर आधारित क्लासिक फिल्मों के पोस्टर लगे थे, और स्थानीय स्वतंत्र फिल्मों की स्क्रीनिंग चल रही थी. यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि इस सिनेमागृह में वे फिल्में दिखाई जाती हैं, जिन्हें आमतौर पर व्यावसायिक रूप से रिलीज होने का अवसर नहीं मिलता. बाद में पता चला कि इस गली का नाम पैशाओ (Paixão) यानी "प्रे...

एक सुबह लू लिम लोक पार्क के नाम

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सुबह के ठीक 7 बजे थे. मकाऊ की सड़कों पर हल्की धूप फैली थी और हवा में एक ताजगी थी, जो शहर के समुद्री किनारों से उठकर मन को भीतर तक छू रही थी. मैंने उस दिन तय किया था, भीड़भाड़ से दूर किसी शांत, सुकून भरी जगह पर खुद के साथ कुछ पल बिताने हैं. होटल के रिसेप्शन पर पूछा तो एक नाम सामने आया — लू लिम लोक पार्क. टैक्सी मुझे Estrada de Adolfo Loureiro तक छोड़ गई. बाहर से देखने पर यह जगह कुछ खास नहीं लगी, लेकिन जैसे ही अंदर कदम रखा, लगा जैसे किसी दूसरी ही दुनिया में आ गया हूं. यह बाग, जो कि 4.4 एकड़ में फैला है, सूझोउ शैली में बना है, वही पारंपरिक चीनी डिज़ाइन जो आपको सुंदरता के साथ शांति का भी अनुभव कराती है. अंदर कदम रखते ही ध्यान सबसे पहले तालाब की ओर गया, जहां चट्टानों से गिरता पानी कमल के पत्तों के बीच खेलती रंगीन मछलियों के बीच जाकर समा रहा था. दृश्य इतना सुंदर था कि कुछ पल के लिए मैं वहीं बैठ गया. यह जगह कभी मकाऊ की सबसे बड़ी निजी संपत्ति थी और अब आम लोगों के लिए एक खुला उद्यान. अपने पुराने वैभव के साथ आज भी जीवंत. पेड़ों की छांव में बैठे बुज़ुर्ग ताई ची कर रहे थे, कुछ लोग ध्यान में ...

हौसले बुलंद हो तो कोई बात कठिन नहीं

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- वेकोलि की अंडरग्राउंड माइन में बेझिझक पहुंचती हैं ये जाबांज अधिकारी by फहीम खान, जर्नलिस्ट, नागपुर.  समाज में कई बार महिलाओं के लिए सीमाएं तय कर दी जाती हैं। कुछ कार्यक्षेत्रों को पारंपरिक रूप से पुरुषों के लिए ही उपयुक्त माना जाता रहा है, लेकिन जब हौसले बुलंद हों और लगन मजबूत हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। वेकोलि (वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की अंडरग्राउंड कोयला खदानों में कार्यरत महिला अधिकारी अखिला सहिती अंकम और प्रज्ञा वैष्णव ने इसी सोच को चुनौती दी है और यह साबित किया है कि संकल्प और समर्पण से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। महिलाओं के लिए माइनिंग में करियर: कठिनाइयों का सफर वर्ष 2019 तक खदानों में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य थी। कोयला खदानों को पुरुषों के लिए सुरक्षित माना जाता था और महिलाओं के इस क्षेत्र में काम करने को लेकर समाज की सोच नकारात्मक थी। लेकिन चंद्रपुर की चंद्राणी प्रसाद वर्मा ने इस धारा को मोड़ा। उन्होंने लंबी न्यायिक लड़ाई लड़कर महिलाओं के लिए इस क्षेत्र के दरवाजे खोले। आज वेकोलि के नागपुर और बल्लारपुर एरिया में कुल पांच महिला अधिकारी कार्यरत हैं, ...

खत्म हुआ कांता ऊर्फ कांतक्का का खौफ

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 18 लाख के इनामिया नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण गड़चिरोली जिले में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे आत्मसमर्पण योजना से प्रभावित होकर दो कुख्यात नक्सलियों ने गुरुवार को आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें से एक नक्सली डीवीसीएम सदस्य के रूप में सक्रिय था, जबकि दूसरा भामरागड़ दलम का सदस्य था। इन दोनों पर कुल 18 लाख रुपये का इनाम घोषित था। कांता ऊर्फ कांतक्का और सुरेश ऊर्फ वारलु का आत्मसमर्पण पुलिस और सरकार की बड़ी सफलता है। इससे नक्सली संगठनों की शक्ति कमजोर होगी और अन्य नक्सलियों को भी आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति से नक्सली हिंसा में कमी आने की उम्मीद है। कौन हैं आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली? कांता ऊर्फ कांतक्का ऊर्फ मांडी गालु पल्लो (56) - डीवीसीएम सप्लाय टीम की सदस्य, निवासी गुंडजूर, भामरागड़ तहसील। इस पर 16 लाख रुपये का इनाम घोषित था। सुरेश ऊर्फ वारलु ईरपा मज्जी (30) - भामरागड़ दलम सदस्य, निवासी मिलदापल्ली, भामरागड़ तहसील। इस पर 2 लाख रुपये का इनाम घोषित था। सरकार की आत्मसमर्पण योजना का प्रभाव भारत सरकार ने वर्ष 2005 में आत्मसमर्पण योजना की शुरुआत ...