15 लाख का घोटाला भूल गया एनआईटी?

15 लाख का घोटाला भूल गया एनआईटी?
- सूख चुके हैं 56 खजूर के पेड़
- ‘सरकार’ को खुश करने लगाए थे
फहीम खान
मुंबई से शहर में आ रही ‘सरकार’ को खुश करने के लिए दो साल पहले शीतसत्र के दौरान लगाए गए वो 56 पेड़ पूरी तरह सूख कर अब गायब भी हो चुके हैं. इस प्लांटेशन पर नागपुर सुधार प्रन्यास (एनआईटी) प्रशासन ने 15 लाख रुपए सरकारी तिजोरी से लुटा दिए. लेकिन लगता है कि एनआईटी प्रशासन इस मामले को अब भुला भी चुका है. तभी तो प्लांटेशन के एक अन्य मामले में गड़बड़ी के लिए अपने 7 कर्मियों को निलंबित करने और 25 अन्य को नोटिस थमाने वाले एनआईटी प्रशासन ने बड़ी ही चालाकी से ‘डेट-ट्री’ मामले की फाइल को छिपा दिया है.
"15 लाख का था टेंडर
उल्लेखनीय है कि शीतसत्र के दौरान सिर्फ ‘सरकार’ को दिखाने के लिए एनआईटी के तत्कालीन चेयरमैन श्याम वर्धने के दिमाग में  आइडिया आया और उन्होंने टेंडर जारी कर दिया. शहर की ही लोटस कंस्ट्रक्शन कंपनी को यह टेंडर 15 लाख की राशि पर दिया गया. जिसमें 5 लाख रुपए मेंटेनन्स की राशि है. 56 पेड़ों के लिए बतौर कीमत एनआईटी ने संबंधित कंपनी को 10 लाख रुपए तुरंत चुका दिए. यानी हर एक पेड़ की कीमत 17857 रुपए के करीब थी. यहां यह भी बता दें कि एनआईटी ने शहर में इससे पहले बहुत बार प्लांटेशन किया है. लेकिन यह पहला मौका था जब छोटे पौधे लगाने के बजाय फुल्ली डेवलप्ड पेड़ों का रिप्लांटेशन किया गया, जिसके चलते इसपर ज्यादा राशि लुटानी पड़ी. 
फाइल ओपन होगी क्या?
उल्लेखनीय है कि एनआईटी प्रशासन ने वर्ष 2012-13 में कराए गए एक प्लांटेशन के मामले में जांच कराई थी. सभापति डॉ. दीपक म्हैसकर ने गार्डन विभाग के 7 कर्मचारियों को निलंबित किया गया है और 25 कर्मचारियों को इसी मामले में नोटिस भी भेजे गए हैं. वर्तमान सभापति एनआईटी की तिजोरी से खर्च की गई राशि की लूट को लेकर बेहद नाराज हैं. उन्होंने साफ कर दिया है कि वो भ्रष्टाचार के मामले में किसी को बख्शेंगे नहीं. लेकिन दूसरी ओर उनके पूर्ववर्ती प्रशासन ने 56 खजूर के पेड़ लगाने के लिए जो 15 लाख रुपयों की राशि सरकारी तिजोरी से लुटा दी है, उस मामले पर वर्तमान सभापति का रुख अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है. जबकि लगाए गए एक भी पेड़ अब दिखाई नहीं दे रहे हैं. सवाल यही है कि क्या सभापति इस मामले की फाइल को भी खुलवाकर दोषियों से सरकारी राशि वसूलेंगे?
महंगा था, फिर भी नहीं हुआ मेंटेनेन्स
बता दें कि न केवल खजूर के पेड़ लगाकर लाखों रुपए सरकारी तिजोरी से लुटा दिए गए, बल्कि यहां प्लांटेशन और मेंटेनेन्स दोनों ही काफी महंगे साबित हुए. एनआईटी ने एक पेड़ के पीछे मेंटेनेन्स चार्ज 8920 रुपए संबंधित कंपनी को चुकाए, लेकिन जब से ये पेड़ लगाए गए थे तभी से पानी के अभाव और धूप के कारण सूखते चले गए. अब तो यह हाल है कि ज्यादातर पेड़ गायब हो चुके हैं. लेकिन पहले कीमत और अब मेंटेनेन्स की राशि डकार चुकी संबंधित कंपनी अपनी जवाबदेही को लेकर सीरियस नजर नहीं आ रही है. वहीं दूसरी ओर खुद एनआईटी प्रशासन भी आंख मूंद कर क्यों बैठा है, यह बात समझ से परे है.
हेडक्वार्टर में क्यों नहीं रखते फाइल?
शीतसत्र के दौरान शहर में किए गए 56 खजूर पेड़ों के प्लांटेशन को लेकर खुद एनआईटी प्रशासन भी परेशान है. पहले इस टेंडर की फाइल एनआईटी हेडआॅफिस से नॉर्थ अंबाझरी विभाग को सौंपी गई थी. लेकिन 15 दिन बाद ही इस फाइल को त्रिमूर्ति चौक स्थित एनआईटी के गार्डनिंग डिपार्टमेंट को भेज दिया गया. यहां पर गार्डन सुप्रीटेंडेंट के पास यह फाइल कुछ दिनों तक रही. इसके बाद फिर से इस फाइल को नॉर्थ अंबाझरी आॅफिस को भेज दिया गया. इसके बाद फिर फाइल हेडआॅफिस भेजी गई. लेकिन अब जानकारी मिल रही है कि फाइल फिर अंबाझरी चली गई है. असल में खजूर के ये पेड़ प्लांटेशन विभाग के लिए ‘गले की फांस’ बन गए हैं. जिसके चलते इस फाइल को हेडआॅफिस से दूर रखने की लगातार कोशिश की जा रही है.
 

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