अब मैरिज सर्टिफिकेट का चक्कर

अब मैरिज सर्टिफिकेट का चक्कर
- मामला बच्चों के सरनेम में गड़बड़ी का
- कम नहीं हो रही अभिभावकों की परेशानी
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फहीम खान
सरकारी तंत्र को आॅनलाइन कर दिए जाने के बाद भी किस तरह नियमों में उलझाकर मामलों को जटिल कर दिया गया है, इसका जीता जागता उदाहरण बन है एक अभिभावक का अपने बच्चों के बदले हुए सरनेम को ठीक कराने की जद्दोजेहद का मामला. अबतक कई तरह के दस्तावेजों को उपलब्ध कराने के लिए ये अभिभावक सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते रहे और अब मामला इस बात पर आकर रुका है कि नाम तभी बदलेगा जब अभिभावकों का मैरिज सर्टिफिकेट पेश किया जाएगा और ज्यादातर दंपतियों की तरह इनके पास भी यह मौजूद नहीं है.
बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर नाम में गलती की गंभीरता को देरी से समझना कितना महंगा साबित हो सकता है, आइए हम आपको बताते हैं. सरकारी व्यवस्था की धीमी रफ्तार ने न सिर्फ इन अभिभावकों की परेशानी को बढ़ा दिया है बल्कि शहर के उन तमाम अभिभावकों के लिए एक सबक भी बन गया है कि उन्हें सरकारी दस्तावेजों के मामले में ज्यादा गंभीर होने की जरूरत है.
शहर के दीपचंद्र मालवी अपने दोनों बेटों के सरनेम बदलने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाकर अब थक गए हैं. लेकिन लग नहीं रहा है कि उन्हें इतनी जल्दी राहत मिलने वाली है. उल्लेखनीय है कि इस मामले को ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ ही सामने लाया था. अब इस मामले में नया पेंच यह आ गया है कि उनके दोनों बेटों के सरनेम ‘मालवीय’ करने के लिए सरकारी विभाग तैयार हो गया है. लेकिन दीपचंद्र उनका सरनेम ‘मालवी’ करना चाहते है, जो कि वास्तव में उनका सरनेम है. लेकिन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब मैरिज सर्टिफिकेट पेश करेंगे तो ही ऐसा हो सकता है, नहीं तो उनका सरनेम ‘मालवी’, बड़े बेटे का ‘मालवीय’ और छोटे बेटे का ‘मड़ावी’ ही रहेगा. इससे भविष्य में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
ऐसे नहीं बदल सकते
इस मामले में जब ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ ने मनपा अधिकारियों से बात की तो उनका कहना था कि नियम के अनुसार ऐसे ही किसी के कहने पर हम नाम नहीं बदल सकते हैं. इसके लिए उन्हें जरूरी प्रमाणपत्र पेश करने होंगे. हमने उनके मामले में बहुत सहयोग देने की कोशिश की है. इसीलिए एफेडेविट मांगा गया था. लेकिन दो-तीन एफेडेविट देने के बाद भी कुछ तकनीकी खामियों के चलते उनसे अब मैरिज सर्टिफिकेट मांगा गया है.
दिक्कत क्या है?
जब मेट्रो एक्सप्रेस ने इस मामले की पड़ताल करते हुए सरकारी अधिकारियों के सामने इस मामले को लेजाकर जानकारी जुटाई तो पता चला कि दीपचंद्र मालवी के पास ऐसा कोई दस्तावेज मौजूद ही नहीं है जिससे उनका सरनेम ‘मालवी’ होने का प्रमाण मिले. उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के निवासी दीपचंद्र के अनुसार उनके यहां सरनेम लिखे जाने की परंपरा ही नहीं है.
ऐसा हो सकता है...
उधर सरकारी अधिकारी कहते हैं कि ऐसा हो सकता है कि उनके बड़े बेटे के सरनेम ‘मालवीय’ के आधार पर हम छोटे बेटे को भी ‘मालवीय’ बता दे, जो कि अभी ‘मड़ावी’ है. लेकिन दीपचंद्र खुद को ‘मालवी’ बता रहे हैं. ये सरनेम दोनों बेटों को तब तक नहीं दिया जा सकता है जबतक दीपचंद्र अपना सरनेम ‘मालवी’ होने का कोई सबूत पेश न करें. इसके लिए उन्हें अपना मैरिज सर्टिफिकेट पेश करना होगा.

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