क्लीन सिटी : दावों की खुल गई पोल

क्लीन सिटी : दावों की खुल गई पोल
- 137वें स्थान पर आने के बाद हो रही आलोचना
फहीम खान, 8483879505
क्या आपने कभी कल्पना भी की थी कि जिस शहर का नारा ही ‘क्लीन सिटी, ग्रीन सिटी’ रहा है, देश में हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में वह 137वें स्थान पर आएगा? यह नतीजा प्रशासन के हवाहवाई दावों के बिल्कुल विपरीत है. और इसका जिम्मेदार भी शहर प्रशासन ही है, जिसके ढुलमुल रवैये के चलते इस सर्वेक्षण के नतीजों ने हर शहर वासी को शर्मिंदगी और खीझ से भर दिया है. वैसे ‘क्लीन सिटी’ का नारा तो पिछले काफी अरसे से दम तोड़ता दिखाई दे रहा है. दर्जनों रिहायशी इलाकों में गंदगी का अंबार लगातार चर्चा में हैं. फुटाला जैसा पॉपुलर पिकनिक स्पॉट तक बजबजाते हुए कचरे के चलते बदबू मार रहा है. और तो और दिया तले अंधेरा देखना है तो मनपा परिसर पर ही नजर डाल लीजिए जरा, जहां आपको मलबे का बड़ा ढेर नजर आ जाएगा. पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट.
---
हाल में देश में स्वच्छता सर्वेक्षण कराया गया. जिसके नतीजे घोषित होने के बाद नागपुर महानगर पालिका प्रशासन के दावों की पोल खुल गई है. उल्लेखनीय है कि सर्वेक्षण के परिणामों का ऐलान करते हुए केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने इसे नागरिकों का फैसला करार दिया था. शहरवासी अब भी मनपा प्रशासन के दावों पर विश्वास नहीं करते हैं. ज्यादातर का मानना है कि अभी शहर ‘क्लीन सिटी’ कहलाने लायक बना ही नहीं है. इसके लिए प्रशासन को कई मोर्चों पर एकसाथ काम करने की जरूरत है.
----
बिन किए क्या मिलेगा?
एमई ने महानगर पालिका के ‘क्लीन सिटी’ कैम्पेन की पड़ताल करने की सोची और इसके लिए उन्हीं की आधिकारिक वेबसाइट को सर्च किया. उल्लेखनीय है कि ये वेबसाइट डेली अपडेट होती है. लेकिन इसके होम पेज पर ‘माई सिटी, क्लीन सिटी, माई रिस्पॉन्सिबिलिटी’ फोल्डर को जैसे ही क्लिक किया तो सारा माजरा समझ आ गया. ‘स्वच्छता अभियान’ के तहत आखिरी कार्यक्रम 3 जून 2016 को आयोजित किया गया, जिसमें बाबा फरीद नगर और रामबाग बारह सिग्नल नाला परिसर में स्वच्छता अभियान चलाया गया था. इसके बाद से ही यह कैम्पेन ठंडे बस्ते में पड़ा रहा. जब मनपा ने कोई काम किया ही नहीं तो फिर स्वच्छ शहर का तमगा उसे मिलता भी कैसे?
------
इस मामले में एमई ने कुछ नागरिकों से प्रतिक्रिया ली.
शुभांगी देशमुख कहती है कि उन्होंने कई बार मनपा की वेबसाइट पर मैसेज सेंड कर ‘क्लीन सिटी’ कैम्पेन के लिए सुझाव दिए थे. लेकिन रिस्पॉन्स कभी भी मिला ही नहीं.
मोहन राउत कहते हैं कि शहर के तालाब और उसके परिसर में जिस तरह की गंदगी दिखाई देती है और सफाई नहीं कराई जाती है इसके बाद ऐसी उम्मीद या दावा करना ही बेवकूफी है.
रमाकांत शास्त्री कहते हैं कि शहर की मौजूदा हालत को देखने के बाद अधिकारियों ने स्वच्छता के मामले में किसी पुरस्कार की उम्मीद ही कैसे लगाई थी? ऐसे हालातों में हम पुरस्कार जीतने की सोच भी नहीं सकते है.
विवेक फुले का कहना है कि शहर में कुछ वर्ष पहले सड़क के किनारे डस्टबीन लगाए गए थे. उसका फायदा वाकई में होता था. शहर स्वच्छ दिखता भी था. लेकिन ज्यादातर चोरी हो गए या फिर टूट गए हैं. लेकिन नए लगाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. फिर भी ख्वाब देखे जा रहे हैं, स्वच्छ नागपुर के.
-----
 

Comments

Popular posts from this blog

मकाऊची प्रेम-गल्ली: त्रावेसा दा पैशाओ

स्वप्ननगरी मकाऊ

ज्वेल चांगी एयरपोर्ट – एक हवाईअड्डा या स्वर्ग का प्रवेशद्वार?