गार्डन को बना लिया मोटी कमाई का जरिया

गार्डन को बना लिया मोटी कमाई का जरिया
-आम जगह पर हो रहीं कमर्शियल एक्टिविटीज
- मामला नरेंद्र नगर के बोरकुटे लेआउट का
- एनआईटी प्रशासन की अनदेखी का उठा रहे फायदा
फहीम खान, 8483879505
हाल के दिनों में राज्य के मुख्यमंत्री ने नागपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (एनआईटी) के अधिकारों को कम करने का निर्णय लिया था. इसके बाद से ही कई लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया भी आने लगी थी. एनआईटी को इस शहर का विकास करने का जिम्मा सौंपा गया था लेकिन उसने अपनी इस जिम्मेदारी के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई. वैसे तो एनआईटी के कई कारनामे उजागर होते रहते हैं. लेकिन अभी जो मामला सामने आया है, उसमें भी उसकी लापरवाही साफ दिखाई दे रही है. पेश है मेट्रो एक्सप्रेस की रिपोर्ट.
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शहर और आस-पास के इलाकों में धड़ल्ले से प्लॉट और अपार्टमेंट बनाकर बेचे जा रहे हैं. एनआईटी को डेवलपमेंट एजेंसी का दर्जा दिए जाने के चलते उसी की अनुमति से इस तरह के प्रोजेक्ट्स सैंक्शन होते हैं. लेकिन इसके लिए जो नियम बनाए गए हैं, उसका कहीं पर भी पालन होता नहीं दिख रहा है. लेआउट डालते समय जो जमीन पब्लिक यूटिलिटी के लिए एनआईटी को दी जाती है, उसमें गार्डन या बच्चों के लिए प्ले ग्राउंड बनाने को प्राथमिकता देने का प्रावधान तो है लेकिन एनआईटी ने ऐसी कितनी ही जगहों पर सिर्फ बोर्ड लगा कर पल्ला झाड़ लिया है. इसी में से एक है नरेंद्र नगर में स्थित बोरकुटे लेआउट.
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क्या है मामला?
वर्ष 1998-99 दौरान बिल्डर प्रवीण बोरकुटे ने बोरकुटे लेआउट के लिए एनआईटी से मैप सैंक्शन कराया था. यहां पर अपार्टमेंट्स के निर्माण के समय ग्राहकों को बताया गया था कि अपार्टमेंट के बीचों -बीच वाली जगह ओपन स्पेस होगी और वहां पर रहवासियों के लिए गार्डन, जॉगिंग पार्क डेवलप किया जाएगा. लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि इसी बीच यह जगह एक क्रिकेट अकादमी को इस्तेमाल के लिए दे दी गई. जिसके चलते स्थानीय रहवासियों में कई सालों से रोष है.  इस संबंध में एनआईटी प्रशासन से कई बार जवाब-तलब भी किया गया लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला.
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बच्चों से छिन रहा बचपन
करीब 12-13 साल पहले कई अपार्टमेंट्स के बीच स्थित इस ओपन स्पेस को डेवलप तो किया गया, लेकिन निजी स्तर पर. यहां के रहवासी यह देखकर खुश भी हुए, पर जल्दी ही उनकी खुशी को ग्रहण लग गया क्योंकि मैदान को बाउंड्री वॉल से घेरने और वहां अच्छी घास लगाने के बाद मैदान के गेट पर ताला लगा दिया और वहां एक क्रिकेट अकादमी का बोर्ड लग गया. शुरुआत में ऐसा कहा गया कि यह जगह अकादमी को कुछ समय के लिए दी गई है. लिहाजा रहवासी चुप रह कर इंतजार करते रहे, जबकि यहां रहने वाले बच्चों को बैडमिंटन, फुटबॉल जैसे खेल खेलने के लिए सड़क के अलावा कोई जगह ही उपलब्ध नहीं थी. क्रिकेट अकादमी में क्रिकेट सीखने के लिए आने वाले लड़कों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है, जिनसे अच्छी खासी फीस भी ली जाती है. पर यहां के रहवासियों के बच्चों को मैदान में एंट्री नहीं मिलती. रहवासियों का कहना है कि इस तरह यहां के बच्चों की एक पूरी पीढ़ी खुलकर खेलने के अपने अधिकार से वंचित रह गई.
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सेलू में रहते है ओनर
इस लेआउट के ओनर प्रवीण बोरकुटे से ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ ने बात करने के लिए दो -तीन बार संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. लेआउट से जुड़े मामले देखने वाले उनके वकील एडवोकेट कुलकर्णी से हालांकि एमई ने बात की तो पता चला कि बोरकुटे अब नागपुर में नहीं रहते है. वो वर्धा जिले के सेलू में शिफ्ट हो चुके हैं.
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वर्जन...
मामला देखना पड़ेगा
वैसे तो कानून में यह प्रावधान है कि पब्लिक यूटिलिटी की जगह को किसी भी संस्था या अकादमी को दिया जा सकता है. लेकिन ओपन स्पेस की जगह के लिए यह नियम लागू नहीं है. अब देखना पड़ेगा कि जिस जगह की बात हो रही है वो मैप में क्या दिखाई गई है?
- एड. कुलकर्णी, (प्रवीण बोरकुटे के वकील)
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वर्जन..
ओपन स्पेस का कमर्शियल इस्तेमाल जुर्म है
एनआईटी द्वारा किसी भी लेआउट या फ्लैट स्कीम को अनुमति देने से पूर्व उनसे सारी सुविधाएं पूर्ण कराने की गारंटी ली जाती है. स्कीम, लेआउट का काम पूरा हो जाने के बाद संबंधित बिल्डर को आॅक्युपेशन सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य है. यह तब तक नहीं दिया जाता है जबतक बिल्डर सारी व्यवस्थाएं पूर्ण न करा ले. कोई भी ओपन स्पेस को न तो किराए पर दे सकता है और न ही किसी कमर्शियल एक्टिविटी के लिए इस्तेमाल कर सकता है. ये कानूनन जुर्म है.
- संजय गुज्जलवार, सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर, एनआईटी
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वर्जन...
असामाजिक तत्वों से बचाया
पहले इस परिसर में असामाजिक तत्वों का मजमा लगा रहता था. ये परिसर बहुत ज्यादा गंदा था. इसे मेंटेन करना आसान बात नहीं थी. ऐसे में क्रिकेट अकादमी को यहां पर स्थापित करने का फैसला लिया गया. इसके बाद से परिसर साफ-सुथरा भी रहता है और असामाजिक तत्वों से राहत भी मिल गई है.
- प्रवीण बोरकुटे, ओनर, बोरकुटे लेआउट.
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ज्यादा शेयर थे इसलिए अकेले लिया फैसला?
उल्लेखनीय है कि ‘एमई’ ने जब लेआउट के ओनर प्रवीण बोरकुटे से इस बारे में पूछा कि आखिर उन्होंने ओपन स्पेस किसी निजी क्रिकेट अकादमी को कैसे दे दिया? इसपर उनका जवाब था कि इस लेआउट में उनके खुद के पास सबसे ज्यादा शेयर हैं. नियम यह कहता है कि मेजॉरिटी यदि कोई फैसला लेती है तो उसे अमल में लाया जा सकता है. मेरे शेयर ज्यादा होने से मैंने अकादमी को यह जमीन इस्तेमाल के लिए देने का फैसला ले लिया.
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