कब खत्म होंगे आॅफिस के चक्कर?

कब खत्म होंगे आॅफिस के चक्कर?
- सरकारीतंत्र की गलती का खामियाजा भुगत रहे अभिभावक
फहीम खान, 8483879505
सरकारी विभागों का निर्माण ही केवल इसलिए किया गया था कि आम नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं प्रदान की जा सकें. लेकिन इन दिनों सरकारी विभागों की लापरवाह कार्यप्रणाली के चलते नागरिकों की परेशानियां बढ़ती नजर आ रही हैं. ऐसा ही एक मामला ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ की पड़ताल में सामने आया है. बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर लिखे नाम में गलती हो जाने का खामियाजा अब एक अभिभावक को भुगतना पड़ रहा है. सरकारी व्यवस्था की धीमी रफ्तार ने इन अभिभावकों की परेशानी और ज्यादा बढ़ा दी है. पेश है ‘एमई’ की रिपोर्ट.
----
शहर के दीपचंद्र मालवी अबतक अपनी जिंदगी बेहद ठीक तरीके से गुजार रहे थे. समय पर काम पर जाते थे और लौट कर आने के बाद परिवार के साथ समय बिताते. लेकिन पिछले कुछ महीनों से उनकी जिंदगी परेशानियों से घिर सी गई है. क्योंकि उनका ज्यादातर समय सरकारी आॅफिसों के चक्कर काटने में बीतने लगा है. एक आॅफिस से दूसरे आॅफिस उन्हें भेजा जाता है. नए-नए डॉक्यूमेंट्स मंगवाए जाते है. लेकिन सबकुछ करने के बाद भी उनकी मूल समस्या अबतक जस की तस बनी हुई है.
----
क्या है मामला?
दीपचंद्र मालवी के दो बेटे है. दोनों ही बेटों का जन्म शहर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुआ था. बड़े बेटे अमन का जन्म 2011 में और छोटे बेटे अनिकेत का जन्म 2013 में हुआ था. दोनों ही बेटों के जन्म की जानकारी मेडिकल से महानगर पालिका कार्यालय को भेजी गई थी. लेकिन मनपा से जब इन दोनों के जन्म प्रमाणपत्र दिए गए तो उसमें नाम में गड़बड़ी हो गई थी. अनिकेत मालवी के स्थान पर मड़ावी हो गया और अमन मालवी के स्थान पर मालवीय हो गया. पहले बेटे के एडमिशन के समय कोई समस्या नहीं हुई तो दीपचंद्र मालवी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन अब जब छोटे बेटे का एडमिशन करने गए तो उसके नाम पर ही आॅब्जेक्शन ले लिया गया.
----
सबकुछ कर लिया...काम नहीं बना
दीपचंद ने मेट्रो एक्सप्रेस को बताया कि जब उनके छोटे बेटे के स्कूल में एडमिशन को लेकर समस्या हुई तो उन्होंने उसके नाम में सुधार करने के लिए आवेदन किया. लेकिन इसके बाद से ही जैसे उनके सरकारी कार्यालयों के चक्कर शुरू हो गए. काम हो नहीं रहा है और चक्कर बढ़ते जा रहे है. बड़े बेटे के नाम में भी सुधार जरूरी हो गया था, सो उन्होंने दोनों काम एक साथ करने का मन बनाया. लेकिन कार्यालयों में जाने के बाद एक टेबल से दूसरे पर भेजा जा रहा है. कभी कोई एफिडेविट मांगा जाता है, तो कभी कुछ और दस्तावेज. सभी कुछ उन्हें दे भी दिया गया है. लेकिन अबतक काम नहीं हुआ. अब तो छोटे बेटे के एडमिशन की चिंता उन्हें परेशान किए जा रही है. मनपा के कार्यालयों से भी उन्हें उचित सहयोग मिलता नहीं दिख रहा. अधिकारियों से भी उन्होंने इस मामले में शिकायत की है लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ.
----
समन्वय का अभाव
उल्लेखनीय है कि इस मामले में दो सरकारी विभागों के बीच का समन्वय का अभाव भी परेशानी बढ़ा रहा है. मेडिकल अस्पताल की ओर से इस गलती का सारा दोष महानगर पालिका पर डाला जा रहा है. जबकि मनपा की ओर से यह कहा जा रहा है कि मेडिकल से जो नाम आते हैं उसी के आधार पर सर्टिफिकेट बना दिए जाते हैं. लेकिन महानगर पालिका एक ओर आॅनलाइन यह सुविधा उपलब्ध करा रही है कि यदि आपका जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र चाहिए तो रजिस्टर्ड नंबर डालकर आप उसे कभी भी हासिल कर सकते हैं. ऐसे में यदि गलती को सुधारने के लिए भी कोई सरल उपाय खोजकर नागरिकों के लिए उपलब्ध कराए जाए तो इसका सभी को फायदा ही होगा.

Comments

Popular posts from this blog

कौन रोकेगा, ये दक्षिण गढ़चिरोली का "लाल सलाम" ?

नक्सलियों के खिलाफ पुलिस के काम आया ‘जनजागरण’ का हथियार

कैसे कहूं मैं... नेता तुम्हीं हो कल के