गंगा जमुना पर जीएसटी की मार

गंगा जमुना पर जीएसटी की मार
- सेक्स वर्कर्स हैं नाराज

फहीम खान, 8483879505
1 जुलाई से लागू हुए गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) का असर विदर्भ का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया कहलाने वाले, नागपुर के ‘गंगा जमुना’ पर भी दिखने लगा है. जीएसटी काउंसिल ने कंडोम को तो टैक्स से अलग रखा है, लेकिन सैनेटरी पैड पर 18 फीसदी टैक्स लगाया है. इसके बाद से यहां रहने वाली सेक्स वर्कर्स पर महंगाई की मार पड़ने लगी है. उल्लेखनीय है कि इस इलाके में सरकार की ओर से फ्री या कम दामों में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने की कोई व्यवस्था नहीं होने से भी महिला यौन कर्मियों पर महंगाई की मार ज्यादा पड़ रही है. पेश है ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट.
शहर के ‘गंगा जमुना’ इलाके में हजारों की संख्या में महिला यौनकर्मी है. सरकार ने हाल में लागू किए गए जीएसटी के तहत सैनेटरी पैड पर 18 प्रतिशत टैक्स लगाया है. ऐसे में जिन-जिन रेडलाइट एरिया में महिला यौनकर्मियों को सस्ते रेट पर सैनेटरी पैड उपलब्ध कराए जाते हैं, वहां पर भी उन्हें जीएसटी के साथ इनको खरीदने पर महिलाओं को अब ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है.
फ्री नहीं मिलते पैड
जीएसटी काउंसिल ने कंडोम पर टैक्स नहीं लगाया लेकिन दूसरी ओर सैनिटरी पैड पर 18 फीसदी जीएसटी लागू कर दिया है. इसका सीधा असर न सिर्फ घरेलू और कामकाजी महिलाओं पर होने लगा है बल्कि इस टैक्स के चलते सबसे ज्यादा नाराजगी रेड लाइट इलाकों में कार्यरत महिला यौनकमियों में नजर आ रही है. इसी की पड़ताल के लिए ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ की टीम ने महिला यौनकर्मियों से बात की. बातचीत में पता चला कि एक तो यहां की सेक्स वर्कर्स को पैड फ्री में नहीं मिलते है. उन्हें यह मेडिकल स्टोर से खरीदने पड़ते हैं. हालांकि यहां दर्जनों एनजीओ कार्यरत हैं लेकिन किसी भी एनजीओ द्वारा फ्री या कम रेट पर सैनिटरी पैड उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. जिसके चलते मेडिकल स्टोर्स से ही इन्हें खरीदना पड़ता था. जब से जीएसटी लागू हुआ है, पैड की कीमतें भी बढ़ गई है.
नागपुर के गंगा जमुना के अलावा विदर्भ के अन्य इलाकों में चल रहे रेड लाइट इलाकों की महिला यौनकर्मियों के साथ भी इसी तरह की परेशानी है. उनका कहना है कि जब से जीएसटी में 18 फीसदी के स्लैब में सैनिटरी पैड को डाला गया है उन्हें ज्यादा पैसे खर्चने पड़ रहे हैं.
मामला पेचीदा है
उल्लेखनीय है कि सैनिटरी नैपकिन की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर विरोध भी होने लगा है. इसी बीच वित्त मंत्रालय की ओर से  कहा जा रहा है कि पहले के मुकाबले में टैक्स बढ़ाया नहीं गया है. वित्त मंत्रालय के अनुसार सैनिटरी नैपकिन बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख कच्चे माल पर 18 और 12 प्रतिशत जीएसटी दर लागू की गई है. 18 प्रतिशत जीएसटी दर में ‘सुपर अवशोषक पॉलीमर, पॉली एथिलीन फिल्म, गोंद, एलएलडीपीई- पैकिंग कवर’ शामिल किए गए हैं. वहीं 12 प्रतिशत जीएसटी दर में ‘थर्मो बांडेड नॉन-वूवन, रिलीज पेपर, लकड़ी की लुगदी’ को शामिल किया गया है. हालांकि महिलाएं यह समझ नहीं पा रही है कि फिर भी सैनिटरी नैपकिन की कीमतों में बढ़ोतरी क्यों हो गई है?
सरकारी स्टॉल जरूरी
एक ओर सरकार की ओर से ‘स्वच्छ भारत’ अभियान चलाया जा रहा है. सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल महिलाओं में स्वच्छता के लिए ही होता है. हर माह इसकी जरूरत होने से रेड लाइट इलाके की महिला यौनकर्मियों के लिए सरकारी स्तर पर ही कोई स्टॉल यहां शुरू किया जाना चाहिए. इस स्टॉल के माध्यम से बेहद कम दामों पर सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराई जाए, ऐसी मांग विभिन्न एनजीओ के प्रतिनिधियों द्वारा हो रही है. उनका कहना है कि कोलकाता के सोनागाछी रेड लाइट इलाके में तो एनजीओ के माध्यम से 8 रुपए कीमत में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराया जा रहा है. पहले ये 3 रुपए में मिलता था. ऐसी पहल यहां भी होनी चाहिए क्योंकि यह महिला यौनकर्मियों के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है. यह भी उल्लेखनीय है कि स्वच्छता के अभाव में न केवल सेक्स वर्कर्स को संक्रामक रोग हो सकते हैं, बल्कि यहां आने वाले ग्राहकों के जरिए बस्ती से बाहर तक भी फैल सकते हैं. लिहाजा यहां सस्ते सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराने के लिए लिए एनजीओ की मदद ली जा सकती है.

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